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________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-२ // 761 // 4 अट्ठ महग्गहा पं० तं०- चंदे सूरे सुक्के बुहे बहस्सती अंगारे सर्णिचरे केऊ५॥सूत्रम् 612 // अट्ठविधा तणवणस्सतिकातिया पं० सं०- मूले कंदे खंधे तया साले पवाले पत्ते पुप्फे॥सूत्रम् 613 // चउरिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स अट्ठविधे संजमेकजति, तं०- चक्खुमातोसोक्खातो अववरोवित्ता भवति, चक्खुमतेणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति, एवं जाव फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति / चरिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स अट्ठविधे असंजमे कज्जति, तं०- चक्खुमातो सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति, चक्खुमतेणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति, एवं जावफासामातो सोक्खातो।सूत्रम् 614 // अट्ठ सुहुमा पं० तं०- पाणसुहुमे 1 पणगसुहुमे 2 बीयसुहुमे 3 हरितसुहमे 4 पुप्फसुहुमे 5 अंडसुहमे 6 लेणसुहमे 7 सिणेहसुहमे ८॥सूत्रम् 615 // भरहस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाइं अणुबद्धं सिद्धाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई, तं०- आदिचजसे महाजसे अतिबले महाबले तेतवीरिते कित्तवीरिते दंडवीरिते जलवीरिते॥सूत्रम् 616 // __ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणितस्स अट्ठ गणा अट्ट गणहरा होत्था, तं०- सुभे अजघोसे वसिढे बंभचारी सोमे सिरिधरिते वीरिते भद्दजसे॥सूत्रम् 617 // तत्र सक्कस्से त्यादि सूत्रपञ्चकं सुगमम्, नवरं महाग्रहा- महानर्थसाधकत्वादिति / महाग्रहाश्च मनुष्यतिरश्चामुपघातानुग्रहकारिणो बादरवनस्पत्युपघातादिकारित्वेनेति बादरवनस्पतीनाह-अट्ठविहे त्यादिसुगमम्, नवरंतणवणस्सइ त्ति बादरवनस्पतिः, कन्दः-स्कन्धस्याधः स्कन्धः स्थुडमिति प्रतीतं त्वक्-छल्ली शाला-शाखा प्रवालं- अङ्करः पत्रपुष्पे प्रतीते / एतदाश्रयाश्चतु अष्टममध्ययन अष्टस्थानम्, सूत्रम् 612-617 शक्रेशानशक्रसोमेशानवैश्रमणाग्रमहिष्यः, महाग्रहाः, तृणवनस्पतयः, चतुरिन्द्रिया| नारम्भारम्भ| संयमासंयमाः, | प्राणादि| सूक्ष्माणि, | भरतवंशसिद्धाः, पार्श्वगणधराः // 761 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
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