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________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् सप्तममध्ययन सप्तस्थानम्, सूत्रम् भाग-२ // 704 // 554-559 स्थानातिगादिकायक्लेशा:, जम्बूधातकी पुष्करपूर्वापरार्द्धवर्ष तं०- सिंधूरोहितंसा हरिकंता सीतोदा णारीकंता रुप्पकूला रत्तवती ।धायइसंडदीवपुरच्छिमद्धे णं सत्त वासा पं० तं०-भरहे जाव महाविदेहे, धायइसंडदीवपुरच्छिमे णं सत्त वासहरपव्वता पं० तं०- चुल्लहिमवंते जाव मंदरे, धायइसंडदीवपुर० सत्त महानतीओ पुरच्छाभिमुहीतो कालोयसमुदं समप्पेंति, तं०- गंगा जाव रत्ता, धायइसंडदीवपुरच्छिमझेणं सत्त महानतीओ पञ्चत्थाभिमुहीओ लवणसमुदंसमप्येति, तं०-सिंधूजाव रत्तवती, धायइसंडदीवे पञ्चत्थिमद्धेणंसत्त वासा एवं चेव,णवरंपुरत्थाभिमुहीओलवणसमुई समप्यति पञ्चत्थाभिमुहाओ कालोदं, सेसंतंचेव, पुक्खरवरदीवड्पुरच्छिमद्धे णं सत्त वासा तहेव, णवरंपुरत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदं समुदं समप्यति पच्चत्थाभिमुहीतो कालोदं समुदं समप्पेंति, सेसंतं चेव, एवं पञ्चत्थिमद्धेवि, णवरं पुरत्थाभिमुहीओ कालोदं समुदं सम० पच्चत्थाभिमुहीओ पुक्खरोदंसमप्पेंति, सव्वत्थ वासा वासहरपव्वता णतीतो य भाणितव्वाणि ॥सूत्रम् 555 // ___ जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे तीताते उस्सप्पिणीते सत्त कुलगरा हुत्था, तं०- मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे। विमलघोसे सुघोसे त, महाघोसे य सत्तमे ॥१॥जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था- पढमित्थ विमलवाहण 1 चक्खुम 2 जसमं 3 चउत्थमभिचंदे 4 / तत्तो य पसेणइ 5 पुण मरुदेवे चेव 6 नाभी य७॥१॥ एएसिणं सत्तण्हं कुलगराणं सत्त भारियाओ हुत्था, तं०-चंदजसा १चंदकांता 2 सुरूव 3 पडिरूव 4 चक्खुकंता ५य। सिरिकंता 6 मरुदेवी 7 कुलकरइत्थीण नामाई॥२॥ जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सत्त कुलकरा भविस्संति-मित्तवाहण सुभोमे य, सुप्पभे य सयंपभे / दत्ते सुहुमे (सुहे सुरूवेय) सुबंधूय, आगमेस्सिण होक्खती॥१॥विमलवाहणे णं कुलकरे सत्तविधा रुक्खा उवभोगत्ताते हव्वमागच्छिंसु, तं०- मत्तंगता त भिंगा चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा। मणियंगा त अणियणा सत्तमगा कप्परुक्खा य 1 // सूत्रम् 556 // सत्तविधा दंडनीती पं० तं०- हक्कारे मक्कारे धिक्कारे परिभासे मंडलबंधे चारते छविच्छेदे // सूत्रम् 557 / / वर्षधरपूर्वपश्चिमाभिमुखनद्यः, अतीतोत्सपिण्यादिकुलकरा:, हकारादिदण्डनीतयः, चक्र्येकेन्द्रियपञ्चेन्द्रियरत्नानि, दुष्षमासुषमाचिह्नानि // 704 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
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