________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ सूत्रम् // 632 // तं०- हेमवंतगा हेरनवंतगा हरिवंसगा रम्मगवंसगा कुरुवासिणो अंतरदीवगा। सूत्रम् 491 / / षष्ठमध्ययन ___ छव्विहा ओसप्पिणी पं० तं०-सुसमसुसमा जाव दूसमदूसमा, छव्विहा ओसप्पिणी पं० तं०- दुस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमा॥ षट्स्थानम्, सूत्रम् 492 // 490-495 जम्बूद्वीपजंबुद्दीवे 2 भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीते सुसमसुसमाते समाए मणुया छच्च धणुसहस्साई उद्दमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च कादिअद्धपलिओवमाई परमाउं पालयित्था 1, जंबुद्दीवे 2 भरहेरवतेसुवासेसु इमीसे ओसप्पिणीते सुसमसुसमाते समाए एवं चेव 2, संमूर्छिमादयो जंबू० भरहेरवते आगमेस्साते उस्सप्पिणीते सुसमसुसमाते समाए एवं चेव जाव छच्च अद्धपलिओवमाई परमाउं पालतिस्संति 3, 12 मनुष्या: ऋद्ध्यनृद्धिजंबुद्दीवे 2 देवकुरुउत्तरकुरासुमणुया छधणुस्सहस्साई उई उच्चत्तेणं पं० छच्च अद्धपलिओवमाई परमाउंपालेंति 4, एवं धायइसंडदीव- मन्तेऽर्हदादि हैमवताद्याः, पुरच्छिमद्धे चत्तारि आलावगा जाव पुक्खरवरदीवडपच्चच्छिमद्धे चत्तारि आलावगा॥सूत्रम् 493 // अरकषट्कम्, छविहे संघयणे पं० तं०-वतिरोसभणारातसंघयणे उसभणारायसंघयणे नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे खीलितासंघयणे देवकुरूत्तरछेवट्ठसंघयणे॥सूत्रम् 494 // कुरुनरोच्चत्वाछविहे संठाणे पं० तं०- समचउरंसे णग्गोहपरिमंडले साती खुजे वामणे हुँडे / / सूत्रम् 495 // युषी, |संहननानि, गतार्थं चैतत्, नवरं अहवा छविहे त्यत्र सम्मूर्च्छनजमनुष्यास्त्रिविधाः कर्मभूमिजादिभेदेन, तथा गर्भव्युत्क्रान्तिकास्त्रिधा संस्थानानि तथैवेति षोढा / चारण त्ति जनाचारणा विद्याचारणाश्च, विद्याधरा-वैतात्यादिवासिनः / छच्चधणुसहस्साई ति त्रीन् क्रोशा // 632 // नित्यर्थः, छच्च अद्धपलिओवमाई ति त्रीणि पल्योपमानीत्यर्थः। संहननं-अस्थिसञ्चयो, वक्ष्यमाणोपमानोपमेयः शक्तिविशेष इत्यन्ये, तत्र वज्रं-कीलिका ऋषभः- परिवेष्टनपट्टो नाराचः- उभयतो मळटबन्धो, यत्र द्वयोरस्थ्नोरुभयतो मर्कटबन्धेन सुषमसुषमा