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________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-२ // 627 // छहिं ठाणेहिंसव्वजीवाणंणत्थि इड्डीति वा जुत्तीति वा, (जसेइ वा बलेति वा वीरिएइ वा पुरिसक्कार) (जाव) परक्कमेति वा, तं०जीवंवा अजीवं करणताते 1 अजीवंवा जीवं करणताते 2 एगसमएणं वा दो भासातो भासित्तते 3 सयंकडंवा कम्मं वेदेमि वा मा वा वेएमि 4 परमाणुपोग्गलं वा छिंदित्तए वा भिंदित्तए वा अगणिकातेण वा समोदहित्तते 5 बहिता वा लोगंता गमणताते 6 // सूत्रम् 479 // छज्जीवनिकाया पं०२०-पुढविकाइया जाव तसकाइया / / सूत्रम् 480 // छ तारग्गहा, पं० तं०-सुक्के बुहे बहस्सति अंगारते सनिच्चरे केतू // सूत्रम् 481 // छव्विहा संसारसमावन्नगाजीवा पं० तं०-पुढविकाइया जाव तसकाइया, पुढविकाइया छगइया छआगतिता पं० तं०- पुढविकातिते पुढविकाइएसुउववजमाणे पुढविकाइएहितोवाजाव तसकाइएहितोवा उववजेजा, सोचेवणंसे पुढविकातिते, पुढविकातितत्तं विप्पजहमाणे पुढविकातितत्ताते वा जाव तसकातितत्ताते वा गच्छेजा, आउकातियावि छगतिता छआगतिता, एवं चेव जाव तसकातिता // सूत्रम् 482 // छव्विहा सव्वजीवा पं० तं०- आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी अन्नाणी, अहवा छविधा सव्वजीवा पं० तं०- एगिंदिया जावपंचिंदिया अणिंदिया, अहवाछविहा सव्वजीवापं० तं०-ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरी आहारगसरीरी तेअगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी।सूत्रम् 483 // छव्विहा तणवणस्सतिकातितापं० तं०- अग्गबीया मूलबीया पोरबीया खंधबीया बीयरुहा समुच्छिमा॥सूत्रम् 484 // छही त्यादि, इह छद्मस्थो-विशिष्टावध्यादिविकलो- न त्वकेवली, यतो यद्यपि धर्माधर्माकाशान्यशरीरं जीवं च परमा षष्ठमध्ययन षट्स्थानम्, सूत्रम् 478-484 छद्मस्थैरज्ञेयाः जिनैश्च ज्ञेयाः पदार्थाः, जीवस्य अजीवीकरणतादीन्यशक्यानि, जीवनिकायाः, तारकग्रहाः, संसारसमापन्नतदत्यागतयः, सर्वजीवषनिधत्वम्, अग्रबीजाद्याः // 627 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
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