SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ / / 622 // पञ्चममध्ययन पधास्थानम्, तृतीयोद्देशक: सूत्रम् 469-474 सौधर्मेशानविमानवोच्चत्वम्, ब्रह्मलान्तक तनूचत्वम् पंचवर्णादिपुदलबन्धाः , गङ्गा-सिन्धुरक्ता-रक्तवतीसमागतनद्य:२० कुमार-तीर्थ वेमाणिता 24 ॥४॥सूत्रम् 469 // जंबुद्दीवे 2 मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं गंगा महानदी पंच महानदीओ समप्पेंति, तं०- जउणा सरऊ आदी कोसी मही 1 / जंबूमंदरस्स दाहिणेणं सिंधुमहाणदी पंच महानदीओ समप्यति तं०- सतर्दू विभासा वितत्था एरावती चंदभागा 2, जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तामहानई पंच महानईओ समप्पेंति, तं०- किण्हा महाकिण्हा नीला महानीला महातीरा 3, जंबूमंदरस्स उत्तरेणं रत्तावतीमहानई पंच महानईओ समप्पेंति, तं०- इंदा इंदसेणा सुसेणा वारिसेणा महाभोया 4 // सूत्रम् 470 // पंचतित्थगरा कुमारवासमझेवसित्ता (ज्झावसित्ता) मुंडाजाव पव्वतिता, तं०-वासुपुजे मल्ली अरिट्ठनेमी पासे वीरे॥सूत्रम् 471 // चमरचंचाए रायहाणीए पंच सभा पं०२०- सभा सुधम्मा उववातसभा अभिसेयसभा अलंकारितसभा ववसातसभा, एगमेगेणं इंदट्ठाणे णं पंच सभाओ पं० २०-सभा सुहम्मा जाव ववसातसभा॥सूत्रम् 472 // पंचणक्खत्ता पंचतारा पं० तं०-धणिट्ठा रोहिणी पुणव्वसूहत्थो विसाहा ।।सूत्रम् 473 / / जीवाणं पंचट्ठाणणिव्वित्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं०- एगिदितनिव्वत्तिते जाव पंचिंदितनिव्वत्तिते, एवं- 'चिण उवचिण बंध उदीर वेद तह णिज्जरा चेव'। पंचपतेसिता खंधा अणंता पण्णत्ता पंचपतेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव पंचगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥सूत्रम् ४७४॥पंचमट्ठाणस्स तईओ उद्देसो।पंचमज्झयणं समत्तं॥ सर्वाण्येतानि सुगमानि, नवरं बंधिंसु त्ति शरीरादितयेति, दक्षिणेने ति भरते समप्पेंति त्ति समाप्नुवन्ति, उत्तरेणे ति ऐरवत इति / पूर्वतरसूत्रे भरतवक्तव्यतोक्तेति तत्प्रस्तावात्तदुत्पन्नतीर्थकरसूत्रंसुगमम्, नवरं कुमाराणामराजभावेन वासः कुमारवासः कराः, चमर चञ्चाराजधानीसभाः , इन्द्रस्थानसभाश्च, धनिष्ठादितारकाः, पञ्चस्थाननिर्वर्तितचयनादि, पञ्चप्रदेशिकादिपुद्रलाः // 622 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy