________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 141 // ८८ग्रहाः पुनरश्विनीत आरभ्यता एवमुक्ताः, अश्वियमदहनकमलजशशिशूलभृददितिजीवफणिपितरः, योन्यर्यमदिनकृत्त्वष्ट्रपवनशक्राग्निमित्रा- द्वितीयमध्ययनं ख्याः॥१॥ ऐन्द्रो निक्रतिस्तोयं विश्वो ब्रह्मा हरिर्वसुर्वरुणः। अजपादोऽहिर्बुध्नः पूषा चेतीश्वरा भानाम् // 2 // (वाराही बृहत्संहिता द्विस्थानम्, तृतीयोद्देशकः ९७/४-५)अङ्गारकादयोऽष्टाशीतिर्ग्रहाःसूत्रसिद्धाः,केवलमस्मदृष्टपुस्तकेषुकेषुचिदेव यथोक्तसङ्ख्यासंवदतीति सूर्यप्रज्ञप्त्य सूत्रम् 90 नुसारेणासाविह संवादनीया, तथाहि तत्सूत्र-तत्थ खलु इमे अट्ठासीई महागहा पन्नत्ता, तंजहा- इंगालए 1 वियालए 2 लोहियक्खे / चन्द्र-सूर्य 28 नक्षत्र३ सणिच्छरे 4 आहुणिए 5 पाहुणिए 6 कणे 7 कणए 8 कणकणए 9 कणवियाणए 10 कणसंताणए 11 सोमे 12 सहिए 13 अस्सासणे 14 कज्जोयए 15 कब्बडए 16 अयकरए 17 दुंदुभए 18 संखे 19 संखवण्णे 20 संखवन्नाभे 21 कंसे 22 कंसवण्णे 23 कंसवन्नाभे 24 णीले 25 णीलोभासे 26 रुप्पी 27 रुप्पोभासे 28 भासे 29 भासरासी 30 तिले 31 तिलपुप्फवण्णे 32 दगे 33 दगपंचवण्णे 34 काए 35 काकंधे 36 इंदग्गी 37 धूमकेऊ 38 हरी 39 पिंगले 40 बुहे 41 सुक्के 42 बहस्सई 43 राहू 44 अगत्थी 45 माणवगे 46 कासे 47 फासे 48 धुरे 49 पमुहे 50 वियडे 51 विसंधी 52 नियल्ले 53 पयल्ले 54 जडियाइल्लए 55 अरुणे 56 अग्गिल्लए 57 काले 58 महाकाले 59 सोत्थिए 60 सोवत्थिए 61 वद्धमाणगे 62 पलंबे 63 णिचालोए 64 निचुजोए 65 सयंपभे 66 ओभासे 67 सेयंकरे 68 खेमंकरे 69 आभंकरे 70 पभंकरे 71 अपराजिए 72 अरए 73 असोगे 74 वीयसोगे 75 विमले 76 वियत्ते 77 वितत्थे 78 विसाले 79 साले 80 सुव्वए 81 अनियट्टी 82 एगजडी 83 दुजडी 84 करकरिए 85 रायग्गले 86 पुप्फकेऊ 87 भावकेऊ 88, इदं तत्रैव संग्रहणीगाथाभिर्नियन्त्रितम्, तथाहि- इंगालए 1 वियालए 2, लोहियक्खे 3 सणिच्छरे चेव 4 / आहुणिए 5 पाहुणिए 6 // 141 // कणगसनामा उ पंचेव ११॥१॥सोमे 1 सहिए 2 आसासणे य 3 कजोवए य 4 कब्बडए 5 / अयकरए 6 दुंदुहए 7 संखसनामाओ तिन्नेव 10 (21) // 2 // तिन्नेव कंसनामा 3 णीला 5 रुप्पी य 7 होंति चत्तारि। भास 9 तिलपुप्फवन्ने 11 दगपंचवन्ने य 13