________________ द्वितीयमध्ययन द्विस्थानम्, श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 142 // कायकाकंधे 15 (36) // 3 // इंदग्गि 1 धूमकेऊ 2 हरि 3 पिंगलए 4 बुहे य 5 सुक्के य 6 / बहस्सइ 7 राहु 8 अगत्थी 9 माणवए 10 कास 11 फासे य 12 (४८)॥४॥धूरे 1 पमुहे 2 वियडे 3 विसंधिणियले 5 तहा पयल्ले य 6 / जडियाइलए 7 अरुणे 8 अग्गिल 9 काले 10 महाकाले 11 (५९)॥५॥सोत्थिय 1 सोवत्थिय 2 वद्धमाणगे 3 तहा पलंबे य 4 / निच्चालोए 5 णिचुज्जोए 6 सयंपभे 7 चेव ओभासे 8 (67) // 6 // सेयंकर 1 खेमंकर 2 आभंकर 3 पभंकरे य 4 बोद्धव्वे। अरए 5 विरए य 6 तहा असोग 7 तह वीयसोगे य 8 (75) // 7 // विमल 1 वितत्त 2 वितत्थे 3 विसाल 4 तह साल 5 सुव्वए 6 चेव। अनियट्टी 7 एगजडी 8 य होइ बिजडी य 9 बोद्धव्वे (८४)॥८॥करकरए 1 रायग्गल 2 बोद्धव्वे पुप्फ 3 भावकेऊ य 4 (88) / अट्ठासीई गहा खलु णेयव्वा आणुपुव्वीए॥९॥ इति / जम्बूद्वीपाधिकारादेवेदमपरमाह जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइआ दो गाउयाई उद्धं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते / लवणस्सणं समुद्दस्स वेतिया दो गाउयाइ उद्धं उच्चत्तेणं पन्नत्ता॥सूत्रम् 91 // धायइसंडे दीवे पुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पन्नत्ता बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव, एवं जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जावदोसुवासेसुमणुया छव्विहंपि कालंपञ्चणुभवमाणा विहरंति तं० भरहे चेव एरवते चेव, णवरं कूडसामली चेव धायइरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे सुदंसणे चेव, धाततीसंडदीवपञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पन्नत्ता बहु० जाव भरहे चेव एरवए चेव जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति भरहे चेव एरवए चेव, णवरं कूडसामली चेव महाधायतीरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पियदंसणे चेव, धायइसंडे णं दीवे दो भरहाई दो एरवयाइंदो हेमवयाइंदो हेरन्नवयाइंदो हरिवासाइंदोरम्मगवासाई दो पुत्वविदेहाइंदो अवरविदेहाइंदो देवकुराओदो देवकुरुमहदुमा तृतीयोद्देशकः सूत्रम् 91-93 वेदिकोच्चत्वम्, धातकीपूर्वापरार्द्धयोः पदार्थद्वयम्, कालोदवेदिकोच्चत्वम्, पुष्करार्द्धद्वये क्षेत्रादिद्विकम् / / 142 //