________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 139 // द्वितीयमध्ययन द्विस्थानम्, तृतीयोद्देशकः सूत्रम् 90 चन्द्र-सूर्य२८ नक्षत्र८८ग्रहा: अधुना तु जम्बूद्वीप एव कालपदार्थव्यञ्जकानां ज्योतिषां द्विस्थानकानुपातेन प्ररूपणामाह जंबुद्दीवे दीवेदो चंदा पभासिंसुवा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिआ तविंसुवा तवंति वा तविस्संति वा, दो कत्तिया, दो रोहिणीओ, दो मगसिराओ, दो अदाओ, एवं भाणियव्वं, कत्तिय रोहिणि मगसिर अद्दा य पुणव्वसू अ पूसो य। तत्तोऽवि अस्सलेसा महा य दो फग्गुणीओ य॥१॥ हत्थो चित्ता साई, विसाहा तहय होति अणुराही। जेट्टी मूलो पुवा य आसाढा उत्तरी चेव॥२॥ अभिईसर्वणणिट्ठा सयभिसया दोय होंति भद्दवया। रेवती 'अस्सिी "भरणी नेतव्वा आणुपुव्वीए॥३॥एवं गाहाणुसारेणंणेयव्वं जाव दो भरणीओ।दो अग्गी दोपयावती दो सोमा दोरुद्दा दो अदिति दो बहस्सती दो सप्पी दो पीती दो भगा दो अज्जमा दो सविता दो तट्ठा दो वाऊदो इंदग्गी दो मित्ता दो इंदा दो निरती दो आऊदो विस्सा दो बम्हा दो विण्हू दो वसूदो वरुणा दो अया दो विविद्धी दो पुस्सा दो अस्सा दो यमा। दो इंगालगा दो वियालगा दो लोहितक्खा दो सणिच्चरा दो आहुणिया दो पाहुणिया दो कणा दो कणगा दो कणकणगा दो कणगविताणगा दो कणगसंताणगा दो सोमा दो सहिया दो आसासणा दो कजोवगा दो कब्बडगा दो अयकरगा दो दुंदुभगा दो संखा दो संखवन्ना दो संखवन्नाभा दो कंसा दो कंसवन्ना दो कंसवन्नाभा दो रुप्पी दो रुप्पाभासा दो णीला दो णीलोभासा दो भासा दो भासरासी दो तिला दो तिलपुप्फवण्णा दो दगा दो दगपंचवन्ना दो काका दो कक्कंधा दो इंदग्गीवा दो धूमकेऊ दो हरी दो पिंगला दो बुद्धा दो सुक्का दो बहस्सती दो राहू दो अगत्थी दो माणवगा दो कासा दो फासा दो धुरा दो पमुहा दो वियडा दो विसंधी दो नियल्ला दो पइल्ला दो जडियाइलगादो अरुणा दो अग्गिल्ला दो काला दो महाकालगा दो सोत्थिया दो सोवत्थिया दो वद्धमाणगा दो पूसमाणगा दो अंकुसा दो पलंबा दो निच्चालोगा दो णिच्चुजोता दो ®नेमे संख्यया तद्दर्शकपाठेन च संवदत इति नाङ्कनीये। // 139 //