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________________ श्रीस्थानाङ्गं श्रीअभय० वृत्तियुतम् भाग-१ // 116 // दोपडिमाओ पं० तं०-समाहिपडिमा चेव उवहाणपडिमा चेव 1, दोपडिमाओ पं० त०-विवेगपडिमा चेव विउसग्गपडिमाचेव द्वितीयमध्ययन द्विस्थानम्, 2, दो पडिमाओ पं० तंजहा- भद्दा चेव सुभद्दा चेव 3, दो पडिमाओ पं० सं०- महाभद्दा चेव सव्वतोभद्दा चेव 4, दो पडिमाओ पं० तृतीयोद्देशकः तं०- खुड्डिया चेव मोयपडिमा महल्लिया चेव मोयपडिमा 5, दो पडिमाओ पं० तं०- जवमज्झा चेव चंदपडिमा वइरमज्झा चेव सूत्रम् 84 ज्ञान-दर्शनचंदपडिमा 6, दुविहे सामाइए पं० तं०- अगारसामाइए चेव अणगारसामाइए चेव // सूत्रम् 84 // चारित्र-तपोदुविहे आयारे त्यादि सूत्रचतुष्टयं कण्ठ्यम्, नवरमाचरणमाचारो- व्यवहारो ज्ञानं- श्रुतज्ञानं तद्विषय आचारः कालादिरष्ट- ऽन्यैराचाराः, समाध्युपधानविधो ज्ञानाचारः, आह च- काले विणए बहुमाणुवहाणे चेव तह अनिण्हवणे / वंजणमत्थ तदुभए अट्ठविहो नाणमायारो // 1 // विवेक(दशवै०नि० 184, निशीथभा० 8) त्ति, नोज्ञानाचार:- एतद्विलक्षणो दर्शनाद्याचार इति, दर्शनं- सम्यक्त्वम्, तदाचारो व्युत्सर्गभद्रानिःशङ्कितादिरष्टविध एव, आह च-णिस्संकिय 1 निक्कंखिय 2 निव्वितिगिच्छा 3 अमूढदिट्ठी 4 य। उववूह 5 थिरीकरणे 6 महाभद्रावच्छल्ल 7 पभावणे 8 अट्ठ॥२॥ (दशवै०नि० 182, निशीथभा० २३)त्ति, नोदर्शनाचारश्चारित्रादिरिति, चारित्राचारः समिति- सर्वतोभद्रा मोक-यवगुप्तिरूपोऽष्टधा, आह च- पणिहाणजोगजुत्तो पंचहिं समिईहिं तीहिंगुत्तीहिं। एस चरित्तायारो अट्ठविहो होडू नायव्वो॥३॥ (दशवै०नि०। वज्रमध्य१८५, निशीथभा० ३५)त्ति, नोचारित्राचारस्तपआचारप्रभृतिः, तत्र तपआचारो द्वादशधा, उक्तंच-बारसविहंमिवि तवे सब्भिंतर चन्द्रप्रतिमाः, अगार्यनगारबाहिरे कुसलदिढे। अगिलाई अणाजीवी नायव्वो सो तवायारो // 4 // (दशवै०नि० 186, निशीथभा० ४२)त्ति, वीर्याचारस्तु / सामायिकानि Oकालो विनयो बहुमान उपधानं चैव तथैवानिह्नवनम् / व्यञ्जनमर्थस्तदुभयमष्टविधो। ज्ञानाचारः // 1 // निश्शङ्कितो निष्कासितो निर्विचिकित्सोऽमूढदृष्टिश्च // 116 // / उपबृंहा स्थिरीकरणं वात्सल्यं प्रभावना अष्टौ // 2 // 0 प्रणिधानयोगयुक्तः पञ्चसु समितिषु तिसृषु गुप्तिषु / एष चारित्राचारोऽष्टविधो भवति ज्ञातव्यः // 1 // द्वादशविधेऽपि तपसि साभ्यन्तरबाह्ये कुशलदृष्टे। अग्लान्याऽनाजीवी ज्ञातव्यः स तपआचारः॥१॥ * अभिंतर० (प्र०)।* अगिलाए (प्र०)। सुभद्रा
SR No.600432
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages538
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size40 MB
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