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________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 685 // याद, अशोभनं त्वशोभनमिति // एवं रूपादिसूत्रमपि नेयम् // 362 // किच से भिक्खूवा० वंता कोहं च माणंच मायं च लोभं च अणुवीइ निट्ठाभासी निसम्मभासी अतुरियभासी विवेगभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा५॥एवं खलु०सया जइजसि // सूत्रम् 363 // त्तिबेमि॥२-१-४-२॥ भाषाऽध्ययनं चतुर्थम्॥२-१-४॥ स भिक्षुः क्रोधादिकं वान्त्वैवंभूतो भवेत्, तद्यथा- अनुविचिन्त्य निष्ठाभाषी निशम्यभाषी अत्वरितभाषी विवेकभाषी भाषासमित्युपेतो भाषां भाषेत, एतत्तस्य भिक्षोः सामग्र्यमिति // 363 // द्वितीयोद्देशकः समाप्तः॥ चतुर्थमध्ययनं भाषाजाताख्यं 2-1-4 समाप्तमिति // श्रुतस्कन्धः२ चूलिका-१ चतुर्थमध्ययनं भाषाजातं, द्वितीयोद्देशकः क्रोधोत्पत्ति वर्जन सूत्रम् 363 भाषणविधिः // इति श्रीश्रुतकेवलीभद्रबाहुस्वामिसन्हब्धनियुक्तियुतं श्रीशीलाङ्काचार्यविहितविवरणसमन्वितं श्रीआचाराङ्गद्वितीयश्रुतस्कन्धवृत्तौ चतुर्थमध्ययनं भाषाजाताख्यं समाप्तम् / / // 685 //
SR No.600431
Book TitleAcharang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyakiritivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size15 MB
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