SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यदत्तचरित्रम एकादशमोऽ. धिकार विकल्पैरिजल्पैस्त्वं, निर्विकल्प समाश्रय / सचित्तं बन्धुदत्तं द्राक, साहसोध्धुरकन्धरम् // 37 // अमुष्य शिष्यसङ्काश, भविष्यं रसविद्यया / त्यज नीरजनेत्रे ! त्वं, पबिनीव निशाकरम् // 38 // इत्यालापं महापापं, श्रृग्वती वृण्वती शुचम् / मुखमालिन्यमाषाय, दध्यावाध्यातमानसा // 39 // छलिना बलिना हा कि, बन्धुदत्तेन निर्जितः / सरलः सवलितो वाचा, ललितौचित्यवान् मियः // 40 // धनेन निधनं नीताऽवत्यनुरागिता [नीतोऽनुरक्तोमत्पति] भूमि-भूजोपात्तकीर्तेः किं हा ! विपर्ययमगात् खलु // 41 // स्थाने गत्वा तदाऽऽस्थाने, ज्ञानेनाऽनुत्तरोत्तरैः / बन्धुदत्तं तिरस्कृत्य, पीणयामि प्रियं गिरा // 42 // भृकुटीभङ्गुरं भालं, तन्वती क्रोधदुर्धरा / विपृश्येति चचालोग्र-लोचना शोचनाऽऽकुला // 43 // वधूर्विधूय लज्जा सा, सज्जंकृत्वा तनुं पुनः। विनिश्चित्य मूर्ति राज्ञः, सभायां पाप तापतः // 44 // भूभुजे जयलक्ष्मीः सा, चख्यौ गत्वा पुरो जवात् / महासतीमिमां पश्याऽभ्यायान्तीमरुणेक्षणाम् // 45 // सेहे न वा गन्धोऽपि, परस्य भियतोऽनया / महासत्या हि सन्तापः, शापहेतुनिरर्थकः // 46 // कम्पमानाघरा रोषाधोषा दोषाशयोज्निता / भटान् करटिनोऽयान्वा, लङ्थ्याडगात् नृपान्तिकम् // 47 // तर्जयन्ती बन्धुदत्तं, गर्जयन्ती क्रुधाऽध्वनः / वर्जयन्ती परान् दृष्टयाऽऽवर्जयंती निजं पतिम् // 48 // प्रलयाम्बुधिवेलेव, दुर्दरा कालरात्रिवत् / दुस्सहा स्पष्टमाचष्ट, घिग् रे दुर्णयकारिणः // 49 // दुर्विकल्पप्रबन्धेन, सम्बन्धमविमर्शयन् / अन्धः कं धर्ममावत्से, रेऽधमाऽधम देवर ! // 50 // भुजे जयला सा, सज्जंकला तर विमृश्येति चचालोय, मीणयामि मिय सिमगाव खलु // 41 //
SR No.600427
Book TitleBhavishyadutta Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
PublisherMafatlal Zaverchand Gandhi
Publication Year1936
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy