________________ भविष्यदत्तचरित्रम एकादशमोड धिकार स्थाने स्थाने कृतास्थानः, किञ्चिन्मन्त्रयते जनः / क्रयविक्रयकर्माणि, नोपक्रामति साधितुम् // 9 // हाहाकारपरः पौरः, सुन्दरं भूपुरन्दरम् / विज्ञापयामो यद्वा नः, स्थातुं नो शक्यते पुरे // 10 // वाती चरमुखात् ज्ञात्वा, जनमाऽऽहवन्नृपः / लोकन्याकुलता किं भो ! मयि राजनि जीवति // 11 // तिष्ठन्तु सुखिनः सर्वे, क्रयविक्रयकर्मणि / मयुंजतां महोत्साई, नाऽहं कस्याऽपि दुःखकृत् // 12 // तुष्टपौरस्तदाऽऽचष्ट, नृपवाक्यसुधाशनात् / बन्धनात् श्रेष्ठिनो लज्जा, पातिता भूभुजा वृथा // 13 // सन्मान्यतामयं वृद्धा, प्रसिद्धः सकले पुरे / श्रेष्ठी धनपतिात्या, माक्तनस्थितिकर्मणाम् // 14 // भुजिष्य इव पौराणां, विनयी नयवेदिनाम् / विशिष्यशिष्यवत्सेवां, भविष्योऽयं करिष्यति // 15 // श्रेष्ठिनाऽनेन सामस्त्ये, जानेऽसौ जन्यशालिना / पुरी प्रभासनीयाऽसौ, जगतीवांशुमालिना // 16 // बन्धुदत्तो मदोन्मत्तश्चितसन्तापको नृणाम् / असक्तं व्यसनासतः, क्लेशकद देशवासिनाम् // 17 // वणिक्कुले धूमकेतु-हेतुर्लोकशुचां परं / लाम्पट्येन परस्त्रीबु, रमते बाधते पुरम् // 18 // निर्वास्योऽयं त्वयाऽऽदेशाद, देशादस्मारतः सुखी। स्थाता पुरे जनः सर्वो, निरेजनतयाऽनया // 19 // पतिपद्य नरेन्द्रेण, पौरलोके विसर्जिते / अनिवार्यप्रवेशोगाद्भविष्यः स नृपान्तिके // 20 // मम विज्ञप्तिरेकाऽस्ति, या चकास्ति स्वरूपतः / भवानीव कुमारी सा, गीयतेऽद्यापि पूर्जनैः // 21 // मयोढा मनोरूढा, सा न मृदा कलाग्रहे / प्रेम्णा मृदाशयाऽनूढा, लक्षिता वेषवर्जनात् // 22 //