________________ भविष्यदत्तचरित्रम् 67 नवमोऽधिकार स्वयं ययौ राजकुले, राजदर्शनहेतवे / डुढौके राजपुरतो, रत्नमेकं महार्घकम् // 54 // राज्ञा निरीक्ष्य तद्रत्नं, प्रशशंस कुमारकम् / स्वामिन्नेशरत्नाप्तिर्भाग्यमाज जनं विना // 55 // ततो राजाऽतितुष्टेन, साऽभिलाषं स जल्पितः / अधुना क्रियते किं ते, कार्यमार्य ! यदीहितम् // 56 // कुमारो विनयादाऽऽरव्यव, देवाऽस्मिन्नगरे मम / बन्धुर्वन्धुरसम्बन्धः, सर्वोऽप्यस्ति महाजनः // 57 // स मध्यस्थतया राजा, अष्टन्यो विजने पदे / तं तं परीक्ष्य कर्त्तव्यं, कार्य तद्गुणदोषयोः // 58 // पुनरप्यब्रवीत् भूपस्तुष्टोऽहं मणिनाऽमुना / ददामि माथितवर, तन्मार्गय यषेप्सितम् // 59 // ततः प्रसादं भूपस्य, पश्यन् स कमलाङ्गजः / ययाचे राजभवने, प्रवेशमनिवारितम् // 6 // आकार्य स प्रतिहारं, न्यवेदीदभूपतिगिरा / निषेध्यो न त्वया सौवेऽसौ धैर्यात प्रविशन्नयी // 61 // ततः सद्यः परावृत्त्य, छन्नीभूय स तस्थिवान् / मातामहकुलं सर्व, भाषयन् क्षेमवार्तया // 2 // सुस्थितः सूनुरम्बां स्वामाहूयाऽवोचदञ्जसा / आनीतां बन्धुदत्तेन, कुमारी तां विलोकय // 63 // साऽप्याह वनिता गुप्ता, रक्ष्यते विजने जनैः / किं कार्य गमने तत्र, पुत्र मे वैरकारणम् // 64 // वार्ताऽस्ति महती मातन प्रकाश्या यतस्ततः / यावद्राजसभां नैक्षे, साक्षीकृत्य स्वसज्जनान् // 65 // अम्बाऽविलम्बादाचष्ट, वत्स ! मे विनिवेदय / वृत्तान्तं त्वं यथावृत्तं, द्वीपान्तरगतस्य ते // 66 // विरहात्कातरः साश्रु-दृक् स मातरमूचिवान् / श्रूयते या कुमारीह, रूपलावण्यमन्दिरा // 67 // SEXEEEEEEEEEO