________________ LE भविष्यदत्ता चरित्रम अष्टमोऽ कारः वरासने निविष्टः सन्, भवदत्तसुता. प्रति / संजया माह चैनाम् स, श्वसुरी पुरतः पिये ! // 27 / / मुखासनात्समुत्तीर्य साऽप्यासन्नजनैर्वृता / नाऽनमन्न बभाषेच, किञ्चिदाक्षिण्यमन्थरा // 28 // माताऽपि सर्वमारल्य-प्रयोगैर्विहितादरा / कृत्वा न्युज्छनकर्माणि, निजमूनुमचीकथत् // 29 // न प्रणामं करोत्येषा, नवा. संभाषते वधूः / निरामया मया दृष्टा, चिरात् पुण्योदयादपि // 30 // जनन्या वचनं श्रुत्वा, परिवारमुवाच सः / एकान्तेऽसौ संनिवेश्या, पित्रोविरहकातरा // 31 // युवतीभिस्तदैकान्ते, सेव्यमानाऽपि सा शोः। मुञ्चन्त्यश्रणि नोवाच, कयाचिद बहुभाषिता // 32 // त्यज मानं वृथा खेदं, कुरुषे किं विमर्शय / श्रेष्ठिसम समायाता, पुरमाधान्यमाऽश्रिता // 33 // स्मरस्यद्यापि किं पित्रोदरदेशान्तरस्थयोः / भूषणैर्भूषयात्मानं, रमस्व स्वामिनाऽमुना // 34 // इत्येवं भाष्यमाणाऽपि, भविष्या नाऽमुचन शुच / भर्तुवियोगतो दनाऽवामस्तासां तथा वचः // 35 // परवेषं समानीय, काचिवकुलवधर्ददौ / मुश्चद मलिनं वस्त्रं, परिधेहि नवं पुनः // 36 // गुणानुरूपस्ते भर्ता, कर्ता क्यापि न विभियं / दर्शनेऽपि स्मर इव, दृश्यते स्नेहवान् भृशम् // 37 // इत्यालापयति स्मैतां, काचिन सख्याय सादरा / मुग्धा स्निग्धशाऽपश्यद्वैदग्धीं तन्मगीदृशः // 38 // कजलं कारप्युपायाय, काचित घुसणलेपनं / दर्पणं दर्शयंत्यन्या, स्थिता तस्याः पुरोंजना // 39 // सम्प्रेक्ष्या सां बहुमेम्णा, व्यापार विविधं हि सा / स्मरन्ति भर्तृसंयोगं, मेने मनसि निष्फलम् // 40 //