________________ भविष्यदत्त चरित्रम सप्तमोऽधिकार राऽभवत् // 61 // पुरेशस्याऽपि न दृश्या, इतितो दृष्टी, स्वेष्टा संपदुपेयुषी तत्सेवया रयादेव देव ! स्युर्विभवाः नवा / जयन्ति चक्रिशकादीन् यल्लामाद अनि मानवाः // 59 // चन्द्रस्तु तनुतापाय, शैत्यभागपि मेऽभवत् / भवदाम्ना तु तज्जातमनातकस्लमोश मे // 60 // त्वत्पसादादसौ सौख्यलक्ष्मीरत्रैव सत्ता / त्वत्पादांभोजतो दरे, गमने सा तिरोऽभवत् // 61 // पादप्रसादश्चेद् भूयो, जातोस्त्यागमनात्पुरे / सुरेशस्याऽपि न दृश्या, वश्या सा भाविनी पुनः॥ 62 // नष्टापद भवतो रष्टौ, स्वेष्टा संपदुपेयुषी / कल्पद्रुकल्प ! दुर्मोह-विकल्पं दूरतः कुरु // 63 // इति स्तुत्वा महासस्वस्तश्चविद्राजमन्दिरे / गवाक्षे दर्शयामास, पुरं भूमिपुरंदरः // 14 // इतश्च विमलम्भेन, पीडिता बोडिना निजात् / नाममुद्राकृते स्वामि-प्रेषणाचरणात् मिया // 65 // हा दैवदग्धया स्निग्धो, मुग्धया प्रेषितः मियः। न ज्ञातोऽवसरः पोत-चलनस्य छलस्पृशाम् // 66 // किं कर्ता मां विना भर्ता, धर्ता खेदं स्वमानसे / घिग मां लुभां विभूषायां, पिये विमियकारिणीम् // 67 // पत्युविरहसंतप्ता, तूलिकां दुःखमूलिकाम् / पल्यङ्कमपि साशङ्क, दूरे तत्याज साजना // 68 // जरत्पीठस्य शकले, स्थित्वा दृष्टिं भुवस्तले / निधाय पत्युानेनाऽगमयत्समय वधूः॥ 69 // तां वशीकर्तुमन्येधुर्वन्धुदत्तोऽभ्यधादिति / किं मृगाति ! कटाक्षेन नेक्षसे मां वर्शवदम् // 70 // कार्य निकायं क्लेशानां, किमर्थं कुरुषे रुषा / पुरुषाशयमाधीय, देहि स्नेहरसं मयि // 71 // . प्रपद्य सघः कातत्वं, मयि प्रणयसभृते / राज्यलक्ष्मीसुखं भुङ्क्ष्व, नगरे हस्तिनापुरे // 72 //