________________ तृतीयों मविण्यद परित्रम अथ भविष्यदत्त्चरित्रे तृतीयोऽधिकारः येन चन्द्रमसा दीतिर्नखभासा विनिर्जिता / स श्रीचन्द्रप्रभुयाञ्चन्द्रनिर्मलकीर्तये // 1 // अवमन्य गिरस्तेषा, विमुच्य कमलश्रियम् / पुनर्धनपतिश्चक्रे, धनदचसुवाग्रहम् // 2 // मणिमाणिक्यमुक्तादीन, वितीयौदार्यशालिना / श्रेष्ठिना परिणिन्ये सा, नाम्ना रूपवती कनी // 3 // कृताऽसौ स्वामिनी सर्व-गृहमारस्य सा वधः। पालयन्ती परिजनं, पत्युरानन्दिनी गिरा // 4 // सुखासनेऽधिरुणाऽसौ, सौभाग्यभरभूषणा / पौरस्त्रीभिः समं चैत्ये, ययौ पूजाकृतेऽईताम् // 5 // श्रेष्ठिनो राज्यमान्यत्वाद, लोकैः सर्वत्र पर्वणि / बहुमानाऽऽसनायैः साऽऽहूयते पूज्यते धनैः॥६॥ तयां समं धनपति-भौगान् स बुभुजे चिरम् / धन्यंमन्यः स्वमात्मानमान्दरसपेशलः // 7 // मियाननविधुज्योत्स्ना-समुहीपितमन्मयः / तदीयाधरपानेन, स पीयूषरसं पपी // 8 // कदापि जलकेलीभिः, कदाचिदनसेवनैः / तया समं रतिं चक्रे, दोगुन्दकसुरोपमः // 9 // हृदयंगमसम्भोगेलौनाया रसनिर्भरैः / कदापि गर्भसम्भूतिस्तस्या रेजेऽभिनन्दिनी // 10 // यथा यथा प्रवधे, गर्भस्तस्या मनोरथैः / तथा तथा स्तनौ स्फाति, जम्मतुः पाण्डुरौ पुनः // 11 // क्रूरग्रहाणामुदये, प्रसूता सुतमद्भुतं / प्रमोदितपरिजनश्चक्रे पित्रा महोत्सवः // 12 // 12