SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यदच चरित्रम द्वितीयोऽ COIधिकार भार्याकार्याणि सर्वाणि, भतृसाध्यान्यवेत्य सा। विविक्षति स्वयं गत्वा, तदा स क्षितिमीक्षते // 26 // आलापेऽपि महापापं, शोचनं तद्विलोकने / स्पर्श दुःखपरामर्श, श्रेष्ठी तस्या व्यजीगणत् // 27 // हास्येऽपि तस्याः संसर्गादास्यं तस्य मलीमसं / गुणेऽपि दोषधीज्ञे, अहो दुष्कर्मचेष्टितम् // 28 // पत्युनिस्नेहतामेवं, सा विमृश्य पदे पदे / मानभ्रंशाद् वरं मृत्युः, हृदीत्यालोचयत्यतः // 29 // : न कृतं विकृतं किञ्चित्, सुकृतं दुष्कृतं नवा / न शीललीलासंचाराद्, व्यभिचारविचारणा // 30 // कटाक्षैक्षितः कश्चित्, भीत्या पर नरो मया / नाऽऽलापि पापि मनसा, किं बभूव तथाऽप्यदः // 31 // पत्युः पीत्या चैपरोत्यमकारणमवारणं / सखीमुखेन वा साऽहं, पृच्छाम्येवमचिन्तयत् // 32 // सखीभिर्बहुधा पृष्टः, श्रेष्ठीनाचष्ट दुष्टधीः / प्रत्युताऽऽलापविच्छेद, तासां निर्वेदकृद् व्यधात् // 33 // अन्येधुः स्वयमभ्येत्य, भर्तारं सा व्यजिज्ञपत् / निरागसः किं सन्तापं, दत्से धत्से न मे हितम् // 34 // भवान् प्रतिक्षणं पार्थान्मां, संतत्याज न रागतः / सुधां मदधरापानादधरामन्वबुध्यत // 35 // कार्याण्युत्सार्य राज्यस्य, रागादागान्मदन्तिकं / ददौ मुखेन ताम्बूलं, क्व स स्नेहश्चिराद् गतः // 36 // अनिमित्तमिदं चित्तं, मत्तः केनाऽपि पापिना / उत्तारितं मुधा दोषमुद्भाव्य भवतः कथम् // 37 // स्त्रीणां चित्तं मृदुतरं, रोपं न सहते मनार / दुनिरिक्षणमात्रेण, खड्गेनैव वधक्रियाम् // 38 // दीर्घकालमियान क्लेशस्ताभिः किं सबते मिय! नाऽपेक्षते वियोगामिरिन्धनानां घनान्यपि // 39 //
SR No.600427
Book TitleBhavishyadutta Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
PublisherMafatlal Zaverchand Gandhi
Publication Year1936
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy