________________ भविष्यदत्तचरित्रम प्रथमोऽधिकारः हं निरीक्ष्य पिताऽवोचत्, प्रमोदाऽऽपूर्णमानसः / अहो महात्मा कोऽप्येषोऽस्माकं कुलकुलाधरः॥ 13 // प्रातः प्रियां प्रति माह, साहसी सिंहवत्सुतः / नयेन विनयेनाऽपि. कान्ते ! मत्तोऽधिकः श्रिया // 14 // तयाऽपुचे जीवितेश : पुण्यपेशलतां ह्यसौ / लभतां स च नामेव, वृद्धि बुद्धवतां सताम् // 15 // नयनाऽऽन्दनाः सर्वे, नन्दनाश्चन्दना भुवि / इष्टं विशिष्टं यद् यत्स्यात्तत्सर्वं पुण्ययोगतः // 16 // यतः-पाज्या राज्यादि संपत, सुभगशुभशताऽऽभोगसंभोगभोगाः। संयोगा निर्वियोगा विनयनयमतिःसंमतिः विश्वविश्वे। आज्ञा राज्ञामलध्या भवति भवतिरोधानबुद्धिः प्रसिद्धिः। सर्व सद्धर्मकर्मद्रुमकुसुमभरोद्भूतसौरभ्यमेतत् // 17 // फलदो यादृशस्ताक्, फलं स्यात्सकलं जने / जनकस्तभवान् श्रेष्ठी, तज्जन्यः किं नु हीयते // 18 // एवं तयोः सुदम्पत्योः, स्नेहालापेन मञ्जुलः / विलासः प्रासरन्नित्यं, वेलया रसवारिधेः // 19 // अन्योऽन्यं प्रणयाऽवेशाद्भोगान् भुञानयोस्तयोः / माग निबद्धं समुदितं, दुष्कर्म कमलश्रियाः // 20 // पत्युः स्नेहेऽपि सन्देहः, प्रत्युताऽनिष्ठताऽजनि / नाऽस्या दर्शनमेतस्मै, रोचते लोचनाम्बुजे // 21 // तारुण्ये पूर्णलावण्ये, सुभगेऽङ्गेऽपि नीरुजि / सरसे वचनोद्गारेऽप्यासीदासीच सा प्रिया // 22 // कमलश्रीस्थितियंत्र, बहिर्वा वेश्मनोऽन्तरे / श्रेष्ठी द्रष्टिं न दत्तेऽपि, तत्र वित्रस्तवद्रुषा // 23 // कार्याय नार्या याऽपैषि, चतुरा पत्युरन्तिके / आली व्यालीव सा मेने, पत्याऽसत्यविकल्पतः // 24 // किं न मे दर्शनारे, म्रियतां वाऽप्यसौ लघु / जनो न हर्ता कोऽप्यस्या, भर्ताऽसावित्यचिन्तयत् // 25 //