________________ भविष्यदन चारित्रम ૧૧ર चतुर्दशमोऽ | धिकारः स्वीयः परो वा नाशायि, सुभटैः समराङ्गणे / क्रोधान्धैरिव भूभागादुत्थिते पांशुसङ्करे // 97 // महाराद्वक्तसंसक्तः, स्वामिरागः स्फुटीकृतः / तथापि यशसा श्वेताऽम्बरराज्यमभून्नृणाम् // 98 // दिगम्बरमुखे धूली-पातान्मालिन्यमीयुपि / समिति प्रतिपल्या भू-जेहासेवाडसिभासनात् // 99 // जयश्रीलाभसंशीतावुभयोलयोस्तदा / सन्नव वज्रकर्णोऽगाद्वर्षन् वाणैः पयोदवत् // 10 // कृतहस्ततया तस्य, विहस्ता कुरुवाहिनी / विवर्णा विहिताऽधुष्टो, जयः पोतनभूपतेः॥१०१॥ तदाऽऽलोक्य सकर्णत्वात्, सेनायाः कुरुभूपतेः / नृसिंहः सिंहवद्गर्जन, तत्संमुखमधावत // 102 // धनुर्वानैरकर्णी तां, सेनां श्रीपोतनेशितुः / कुर्वन् अकाण्डकाण्डौघैर्वजकर्णमथाऽखलत् // 103 // तयो जबलपेक्षा-विस्मितैर्विविधैभटैः / नाऽऽरेमे समरारम्भः, स्तम्भमाप्रसौष्ठवात् // 104 // ज्यां चकरी नृसिंहोऽस्य, शरप्रसरमोचनात् / मुद्गराघाततश्ची चक्रे तद्रवमञ्जसा // 105 // वज्रकर्णनृपो रोषात्तघातायाऽसिमुद्वहन् / पातितस्तेन कुन्तेन, भिन्नः सद्यो व्यपद्यत // 106 // सिंहमल्लोऽविलम्बेन, लम्बकर्ण जघान सः / युक्तं हि लम्बकर्णस्य, घाते सिंहस्य न श्रमः // 107 // पतत्तुभटकोटीनां, मुण्डैराच्छादिता मही। ऊहुः कसन्धान हरयो, विपन्नस्याऽपि सादिनः॥१०८॥ चक्रः खस्तया कुन्तैर्यत्रैश्च तोमरैः शरैः। उभयोः सैन्ययोर्जज्ञे, प्रेरणाददारुणे रणे // 109 // आपतत् सर्वसम्भारात, कुरुसैन्य प्रभोर्जयात् / पोतनाधिपतेः सेना, संभूयाऽरुणदुन्मदा // 11 //