________________ भविष्यदत्तचरित्रमा चतुर्दशमोऽ धिकारः तत्पत्तयो गजबलेऽस्माकं, संपस्थिते पुरः / पतन्तु निजघाताय, विजयस्तेन भूपतेः // 83 // तथाऽऽदिष्टे भविष्येण, रणागणमितोऽविशत् / अयोध्याभूभुजा साकं, तत्सेनाऽऽकुलिता पुरः // 84 // क्षोणी हयखरैः कृष्णा-बनितेव नखक्षातै / कामोन्मादाय वीराणां, रेणुनाऽस्थगयदिशः॥८५ // ऋतुस्नातेव शूराणां, शोणितैः प्रसूतैर्धरा / अनालोक्याऽभवत्खीव, चित्रं सा च रजस्वला // 86 // इतो दधावेऽभिमुखं, कुरुसैन्य मदोध्धुरम् / जायमाने तयोर्युदे, शरैराच्छादितं नमः॥ 87 // स्वस्वामिविजयाकांक्षा, नटैरिव भटैमिथः / वञ्चयद्भिः शखघात, विदधे गात्रचालनम् // 88 // रेणुधूम इव मादु-र्वभूवाऽम्बररोधकः / अंतरज्वलद्वीरजनक्रोधज्वलनसम्भवः // 89 // गजपाला गजाजीवैः, सादिभिः सादिनस्तथा / रथारूढास्तु रुधिरैस्तदा युयुधिरे परैः॥९॥ भारेभे रणसंरम्भो, रम्भावरणतत्परैः / शूरैरदुरे स्वस्त्रीणां, शङ्कयोन्मिषितेक्षणैः // 91 // तयो|ररणप्रेक्षा-चकितैरिव तीव्रगैः / हरिभिर्जलधेस्तीरे, निन्ये तत्क्षणतो रथः // 92 // स्वस्वस्वामिनिदेशेन, निवृत्तास्ते महौजसः / शान्तिः प्रवकृते लोके, द्विजेशाऽभ्यगमादिव // 93 // शूरेण दूरे निक्षिप्ते, प्रभाते तमसां भरे / तच्छिक्षयेव शूराणां, पुनयुद्धमजायत // 94 // धावद्भिर धैरुत्क्षिप्तः, पर्जन्यतया रिपोः / गर्मदजलप्लावैनिल इव निर्ममे // 95 // भूमिः पांशुबलाव्योम, जगाहे स्वर्दिदृक्षया / सर्वाऽसिस्त्रीजनैर्भूमी-तलं बलवदाशया // 96 //