________________ भविष्यदत्तचरित्रम त्रयोदध्मो |धिकार 100 मार्गणीभूय यत्किश्चिन्मार्गयेत्तन्महाशयः / तस्मै ददाति नाऽन्यस्मै, यः प्रेरयति मार्गणम् // 41 // निनस्य धनं देयं, निर्द्धनस्पडितस्य च / तद् येन तुष्यतु तव, स्वामी तत्रैव यत्यते // 42 // दीयतेऽस्माभिरित्येव, का तंत्र प्रकृतिर्मता / प्रतिभूमत्ययो वाऽत्र, निस्त्रिंशे चिन्त्यतां हदि // 43 // नृपेण भणिते चैव, वाक्ये युद्धसमुच्चरे / अनन्तपालः मावोचत्, सर्व सामाजिकान्मति // 44 // मया दृष्टः क्षमापालो, बालबत्पालयन् प्रजाः / कालवत्सो क्षमापाल: प्रत्यर्थिषु कदर्थने // 45 // यः पश्चिमसमुद्रान्त, प्रशशास महीतलम् / दुर्दरा ये धराधीशास्तेऽप्यस्य वशवर्तिनः // 46 // कच्छाधिपः स्वविषय, प्रविशन् केन वार्यते / दावानल इवोत्तालः, करालकरवालभृत् // 47 // न विग्रहोऽमुना साक, सन्धिरेव विधीयताम् / यन्मार्गयति चित्राङ्गो, विना पुत्री प्रदीयताम् // 48 // स्वयं माध्यस्थामास्थाय, प्रेक्ष्यतां क्षितिरक्षिणा / को नरेन्द्रः कथं कर्ता, सन्धियुद्ध पलायनम् // 49 // यदि कच्छाधिपो देशे, प्रविक्ष्यति बलैः समम् / तदा भटानां मरणं, परेषां शरणं गिरेः॥ 50 // यदि भाग्यवशाभूमेनागमिष्यति स स्वयम् / तदाऽस्य सेनया सेना, रसेनाऽऽजि करिष्यति // 51 // विदुषी मुमुखी पोचे, महिषी मियसुन्दरी / अस्मज्जामातुरादातं. पत्नीरत्नं हि कः क्षमः / / 52 // विद्यानुभावतः माप्त, स्वर्णरत्नादिकं धनम् / यानपात्रं विनाऽम्बोधिस्तीर्णो येन महात्मना // 53 // यद्यदुक्तं तत्मदाने, हानि पतितेजसः / दैवात्कामरसावेशात्पुत्रीमप्यर्थयिष्यति // 54 //