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________________ भविष्यदत्तचरित्रम् द्वादशमोड धिकार: कर किं कर्त्तव्यमतो वत्स ! बुद्धिमान् विनयी नयी / नाऽन्यस्त्वया समो वंशे, माधान्यधनवान् मम // 91 // श्रुत्वा काञ्चनमालाऽऽह, श्रेष्ठिन् ! स्मरसि किं न तत् / नैष्कारणं गृहादेषाऽअहान्निष्काशिता पुरा // 92 // अस्याः सौभाग्यमुहाल्य, मानं निर्मथ्य दुर्गिरा / रूपवत्यनुरक्तेन, पापिता व्यसनं त्वया // 93 // अनया दीनया काऽपि, शीललीला न खण्डिता / चित्ते सपल्या ते शङ्का, लिप्ता तां को निवारयेत् // 94 // दैवाद्भूपतिना वेश्म-स्वामिनी विहिता हितात् / स्वपुत्रस्य गुणोत्कर्षान, मानिनी नाऽमुचत् शुचम् // 95 // तत् ज्ञात्वा श्रेष्ठिना पोचे, युक्तं काञ्चनमालया / भणितं येन मानिन्या, मानमेव महद्धनम् // 96 // तद्विमृश्य मिथः प्राप्तौ, तातपुत्रौ हरेहम् / तेनाऽप्यासनताम्बूल-दानाद्यैः समुपासितौ // 97 // जामात्रा श्रेष्ठिना श्वश्रूलक्ष्मीर्लक्ष्मीरिवागनी / प्रणम्य भणिता रुष्टा, दुहिता केन हेतुना // 98 // पूर्वस्मादपराधान्मे, यदि रोषं दधात्यसौ / तत् क्षन्तव्यमिदानी द्राक्, घिग् मां व्यामूढमानसम् // 99 // एतस्यास्तनयेनेदं, कुलं प्रख्यापितं भुवि / एतया रुष्टया विचं, शून्यं मन्येऽहमात्मना // 10 // प्राक् सम्भ्रमेण केनापि, विनयादिगुणान्विता / सुशीला मयि भक्ताऽपि, कोपिताऽजानता मया // 101 // इदानीं ज्ञापितो वार्तामहं काञ्चनमालया / कृतापराधः सोढव्यो, मम सन्मुखमीयुषः // 102 // ततो विहस्य सा लक्ष्मीः, किं वृया खिद्यसे हृदि / जामातः! कातराक्षणां, स्वभावो हीदृशो भवेत् // 103 // मृदुवाचाभिः सन्तोष्य, नेयाऽसौ तनया गृहे / दुष्कृतमनया पूर्व, तज्जन्योऽयं पराभवः // 104 // EXERIESXXXXXXXXXXXX
SR No.600427
Book TitleBhavishyadutta Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghvijay Gani, Mafatlal Zaverchand Gandhi
PublisherMafatlal Zaverchand Gandhi
Publication Year1936
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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