________________ अर्जितं स्वर्णमौकिक्तमाणिक्यादि शुभं धनम् // स्वप्रियायाः करे सर्व मर्पयति प्रहर्षतः // 41 // प्रयाति न हि विश्वासं मातृ भातृ सुतादिषु // अर्पणे किंतु तैः सार्ध महाक्लेशं करोति च // 42 // Ka प्रिये तव वियोगो मां बाधते किं करोम्यहम् // पावे समागमिष्यामि नूनं ते पंचमे दिने // 43 // KE जड वचसि यच्च तुमं कोवारड जमनाह जंतस्स ॥तुह्ममणे महमरणं सिहियं होही कहं तस्य // 44 // ke आश्वासितापि सा वक्ति वाक्य मेवं महासती // आश्वासयति सैवं तां शपथानां शतैरपि // 45 // तदा सोवाच हे नाथ द्वियामं पंचमे दिने // मार्ग विलोकयिष्यामि यावत्तेऽहं समुत्सुका॥ 46 // भवन्तो नागमिष्यन्ति ततः परं निरुत्सुका // स्वदेहं पावके धृत्वा ज्वालयिष्यामि सत्वरम् // 47 // | अथैवं तं वचोबद्धं विधायोवाच सा पुनः // स्वामिंस्तत्र पुरेऽनेके द्यूतकारा वसन्ति वै // 48 // धूर्ताश्चौरा जना ग्रन्थिछोटका वंचकाः खलाः // कायस्थादिमहादुष्टा वसन्ति कपटान्विताः // 49 // निवासोऽस्ति चतुःषष्ठी योगिनीनां पुनः पुरम् // क्रीडास्थानं द्विपञ्चाशद्वीराणां लोकविश्रुतम् // 50 // K व्यवहारं स्वसंज्ञाभिस्तत्र कुर्वन्ति मानवाः // बहुबुद्धिसनाथोऽपि जनस्तत्र विमुह्यति // 51 // कायस्थेनोदरस्थेन मातुर्मासं न भक्षितम् // मा दयां तत्र जानीहि तत्र हेतुरदन्तता // 52 //