________________ चरित्रम् श्री सदैववत्स लेखनीकृतकर्णस्य कायस्थस्य न विश्वसेत् // यमोऽपि वंचितोऽनेन गकारांतररेखया // 53 // 48 विश्वासो नैव कस्यापि कर्तव्यो हि महीतले // तथा चोक्तं विवेकादिविलासे कविना खलु // 54 // विश्वासो नैव कस्यापि कार्य एषां विशेषतः॥ पाखण्डिनां तथा क्रूरसत्वप्रत्यंतवासिनाम् // 55 // धूर्तानां प्रागविरुद्धानां बालानां योषितां तथा // स्वर्णकार जलाग्नीनां नखिनां प्रभुणामपि // 56 // नीचानामलसानां च पराक्रमवतां तथा // कृतघ्नानां च चौराणां नास्तिकानां च जातुचित् 57 // // शिक्षा मुक्त्वा स्वभार्यायां स्थितायां सदयोऽवदत् // नूनं मेवंविधे पुरे गन्तु मिच्छामि बुद्धितः // 18 // Ka तत्रैव मे महान् लाभोऽपि भविष्यति हे प्रिये // कुमारेणाथ तं भट्ट माकार्य कथितं वचः // 59 // भोभट्ट ते गृहे मुक्त्वा मम भार्या मिमा महम् // प्रतिष्ठानपुरे गंतु मिच्छामि दिनपंचकम् // 6 // अतोऽवश्यं त्वया कार्य मे प्रियायाः सुरक्षणम् // भट्टेन पान्थ मुञ्चोक्तं निश्चिताय मगृहे // 6 // सावलिंगा तदोवाच स्वामिन्नेकाकिनी स्वयम् // अत्र भट्टनिवासेऽहं स्थास्यामि तु कथं यतः // 6 // पुस्तिका खटिका नारी परहस्तगता सती // नष्टा ज्ञेयाथवा पुंसा धृष्टा भुक्ता च लभ्यते // 3 // सदयेन तदा तस्य भट्टस्य दृष्टिगोचरम् // स्वप्रियां प्रत्युक्तं सच्छृणु हितकरं वचः // 64 // 48