________________ चरित्रम् 43 श्री सदैववत्स | वररुचिः स्थितो गत्वा श्मशानवटकोटरे // अथ तस्मिन् वटे रात्रौ प्रेतयूथं समागतम् // 336 // कुर्वन्ति वार्तया सर्वे विनोदं च परस्परम् // एकेनोक्तं प्रभाते वै नूनमस्मात् पुराद् बहिः // 337 // प्राज्ञनिष्काशनेनात्र विडंबना भविष्यति // तच्छ्रुत्वैको लघुप्रेतस्तं वृद्धं प्रति प्रच्छति // 338 // हेतुना केन भो तात पुरान्निष्काशनं बहिः // श्लोकार्थाज्ञानतो वत्स मिथ्यानासाच्च सोऽवदत्॥३३९॥ लघुप्रेतस्तदोवाच भो तातार्थोऽस्ति कस्तयोः // प्राह वृद्धस्तदर्थेन किमस्माकं प्रयोजनम् // 340 // | इत्युक्तोपि लघुप्रेतो मुमोच न कदाग्रहम् // अत उक्तं जगत्यस्मिन् नीतिग्रन्थेषु पंडितैः॥३४१॥ KE बालनारीनरेन्द्राणा ग्रहो अथिलसंनिभः // कंकपत्रीकृते येन वल्लभीभंग ईरितः // 342 // | महामत्याश्च सीताया जाते हेममृगाग्रहे // रावणेन समं युद्धं रामस्यापि बभूव ह // 343 // | स्वाराज्ये पांडुपुत्राणां कौरवाणां क्षयोऽभवत् // लघुप्रेताग्रहं दृष्ट्वा वृद्धप्रेतोऽवदच्णु // 344 // पद्माख्यं तु पुरं पद्मं वणिक्पुत्री तुला स्मृता // तिलकमंजरी ख्याता रदौ दंतौ प्रकीर्तितौ // 345 // रक्तावोष्ठौ तयोः पाणिग्रहणात्संगमो भवेत् // मुखे दशांगुलीक्षेपं कृत्वा विज्ञापयामि भोः // 346 // अथैतद्विषये राजंस्तव चित्ते यथा भवेत् // ममोपरि कृपां कृत्वा ज्ञापनीयं त्वयानघ // 347 //