SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्रम् श्री सदैववत्स 42 धनाप्तये गृहीत्वासौ हेम्नामाभूषणदिकम् // क्षत्रियैकसहायेन देशान्तरे चचाल ह // 312 // मागेंस्थगच्छता तेन सहायीभूतपाप्नना // धनलोभान्महारण्ये हन्तुं बद्धः स बुद्धिमान् // 313 // व्यवहारिसुतेनोक्तं भो मित्र त्वं धनं मम // गृहीत्वा मुंच जीवंतं प्रार्थितोऽपि मुमोच न // 31 // ततो वणिकसुतश्चासौ निजबुद्धिप्रभावतः // स्ववैरवालनायैव गृहीतंच पुनर्धनम् // 315 // - स्वपितुरर्पणायैव संदेशं च गुढाक्षरम् // कथयित्वा स तस्याग्रे तं प्रतिज्ञामकारयत् // 316 // मयि प्रसद्य भोमित्र संदेशो मत्पितुः पुरः॥ कथनीयो त्वयैकोऽय मित्युक्त्वा सो वदत्ततः // 317 // अप्रशिखेतितच्छ्रुत्वा क्षत्रियेण विचारितम् // एतावत् कथनेनापि मे पायो न भविष्यति // 318 // | ततोऽसौमारयित्वा तं गृहीतं सकलं धनम् // कियत्कालेन तत्रैव भ्रमन् स्वनगरे गतः // 319 // तेन पापात्मना तस्य गृहे गत्वा पितुः पुरः // तत्पुत्रमरणं प्रोक्तं मान्यादिना करोमि किम् // 320 // अप्रशिखेति तेनोक्तः संदेशः कथितस्तदा // इत्युक्त्वा स खलस्तस्मादुत्थाय स्वाश्रमं गतः // 321 // पुत्रस्य मरणं श्रुत्वा महाशोकातुरश्च सः // दिनानि कानिचिच्छोकादथ श्रेष्ठयतिवाहयत् // 322 // क्रमेण गच्छता सोऽपि कियत्कालेन बुद्धिमान् // स्तोकीभूतमहाशोकः संदेशार्थेऽकरोन् मतिम् // 323 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy