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________________ | क्षीरेणात्मगतोदकाय सुगुणा दत्ता पुरा तेऽखिलाः क्षीरे तापमवेक्ष्य तेन पयसा ह्यात्मा कृशानौ हुतः॥ गंतुं पावक मुन्मना स्तदभवत् दृष्ट्वा तु मित्रापदं युक्तं तेन जलेन शाम्यति पुनमैत्री सतामीदृशी // 277 // उक्तं तदा कुमारेण भवत्वेवं भवछचः // युष्मानहं स्मरिष्यामि यत्र तत्र विपद्गतः // 278 // अग्रे गच्छन्नथैकं स शून्यं पुरं ददर्शह // पुरमध्ये गतश्चापि धनधान्यादिसंभृताम् // 279 // चतुष्के निर्जनां दृष्ट्वा हश्रेणी मचिंतयत् // यदि कोऽपि मनुप्यो मां मिलत्यत्र महामतिः // 280 // निर्मनुष्यपुरस्यास्य पृच्छामि तं स्वरुपकम् // परं तत्र तदा तेन कोऽपि दृष्टो नरो नहि // 281 // Hel ततो भ्रमन्नसौ संध्याकाले राजगृहं गत : // गत्वा च सप्तमी भूमिं स्थितस्तत्र महाबलः // 282 // निद्रिता सावलिंगा च रात्रौ तत्र सुखाश्रया // जागरूकः कुमारश्च रक्षायै सुस्थितोऽभवत् // 283 // मध्यरात्रौ समीपस्य निवासे तेन संश्रुतम् // कस्या अपि स्त्रियो गाढं करुणस्वररोदनम् // 28 // जिज्ञासया कुमारोऽपि तत्रावासे गतस्तदा // रोदनं कुर्वती दृष्टवा स्त्रियं पप्रच्छ कारणम् // 285 // रोदिषि सुंदरि त्वं किं निर्मानुषे पुरे स्थिता // सा वक्ति भो महाबुद्धे शृणु तत् कथयाम्यहम् // 286 // यस्य कस्य समीपे स्वं वृत्तं न कथयेन्नरः // परं भाग्याधिको भासि तवाग्रेऽतो वदाम्यहम् // 287 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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