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________________ चरित्रम् श्री सदैववत्सा खचिकीर्षितदुष्कृत्यं तस्याग्रे कथितं तदा // अहितं कृतमस्माभिः परं देवेन रक्षितः // 266 // - अथ प्राह कुमारस्तान् यूयं के व्रत सजनाः // कुतश्चात्र समायाता गुप्तस्थाने वदन्तु तत् // 267 // विद्यासिद्धा वयं चौरा इत्युक्त्वातेऽभिधां जगुः // अर्जक आमयः शूली सेवालश्चचतुर्थकः // 26 // घोरांधकार इत्येवं पञ्चनामानि सन्ति नः // चौर्याल्लोकधनं हत्वा विलसामो वयं सदा // 269 // अथासौ चलितुं तस्मात् प्रारभते यदा तदा // तैरुक्तं जो महाबुद्धे त्वमस्माकं समीपतः // 270 // गृहाण सिद्धिदां विद्या कामपि पार्थितश्चतैः // किंचिदपि स्वयं तेभ्यो गृहीतुं नहि वाञ्छति // 27 // तेषां मध्यादथैकेन पद्मिनीपत्रवेष्टितः // तुष्टेन कंचुको बद्धः उत्तरीयांचले तदा // 272 // लक्षमूल्येन रत्नेन मौक्तिकैः खचितः स च // तमजानन् कुमारोऽपि ततो गंतुं मनो दधे // 273 // तैरुक्तं चाथ हे मित्र कस्मिन् कष्टे समापतेः // कदापि यदित्वं क्वापि तदास्मान् सत्वरं स्मरेः॥२७॥ सिद्धिर्जनानामथ वै रसानां युद्धे जयानां-जलतारकाणाम् // गिरेविदारिण्यरिमर्दिनी-घ ह्याकाश गामिन्यपि नः समीपे 190 त्वमस्माकं परं मित्रं यतोऽसीह सुसंगतः // अतोऽवश्यं सहायं त्वां कर्तु मुत्कण्ठिता वयम् // 276 // 0
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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