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________________ मस्तकमेव सर्वेषां पणोऽस्तु चेत्युचुश्च ते // कौटिल्येन वदन्त्येते कुमारेणापि चिन्तितम् // 254 // आकारै रिंगितैर्गत्या चेष्टया भाषणेन च // नेत्रवक्त्रविकारैश्च लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः // 255 // परं तेषा मिदं पापं दुःखदं च भविष्यति // विचार्येति कुमारेण प्रोक्तं भो एव मस्तु तत् // 256 // ततो छूतेऽपि तत्काले हरसिद्धिप्रभावतः // तेषां शिरांसि पञ्चानां कुमारेण जितानि वै // 25 // तैरुक्तं चाथ भो मित्र गृहाण त्वं शिरांसि नः॥ तदाऽवदत् कुमारोऽपि शृणुत सुहृदो वचः // 258 // सुहृद्भिातृवर्गेश्च प्रीत्यैव रम्यते समम् // तं प्रायस्ततोयूयं मया बन्धुसमा मताः // 259 // सहोदरः सहाध्यायी मैत्र्यवान् रोगपालकः // मार्गे वाचा कृतप्रीतिः पञ्चैते बन्धवो मताः // 260 // विस्मितै स्तैस्ततः प्रोक्तं भोमित्र श्रूयतां वचः // अस्माभिः पापभिद्रोह चिंतितोऽभूत्तवोपरि // 261 // KE परं त्वनाग्ययोगेन नः संतापकरोऽजनि // यः करोति स तद् भुंक्ते ह्यत उक्तं जगत्यपि // 262 // E द्रुह्यन्ति ये महात्मभ्यो द्रुह्यत्यात्मानमेव ते // पूर्णेन्द्रुग्राहकृद्राहुः शीर्षशेषोऽभवन्न किम् // 263 // E सौम्ये विरूपचिंताया मपि स्वस्य विपनरः // दधिमन्थचिकीर्मन्थाः स्त्रीभिर्बद्धो निरीक्ष्यताम् // 264 // | पृच्छत्यथ कुमारोऽपि भोसुहृदो ममोपरि // युष्माभि चिंतितो द्वेषः कथं सत्यं वदन्तु नः // 265 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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