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________________ चरित्रम् श्री सदैववत्स - पुरुषाः पञ्च तत्रासन् वार्तालापपरा अपि॥ तेन दृष्टास्ततस्तेऽपि दृष्ट्वा तं विस्मयं गताः // 24 // - सुंदर्या नार्यया साक मागतं तं विलोक्य ते // स्वचित्ते चिंतयामासुः पुरुषा पञ्च चेत्यपि // 243 // शिलया पिहितद्वारां कथमिमा समागतः // सामान्यः पुरुषो नायं किंतु कोऽपि नृपांगजः // 244 // - सुरांगनासमां भार्या दृष्ट्वाथ तैः परस्परम् // आलोचितं गृहिष्यामो ह्येनं हत्वा प्रियामिमाम् // 245 // - तेषां मध्यात्तदैकेन जनेनोक्तं सुहृद्वराः // स कथं मार्यते मिथ्या ह्युपायः क्रियतां वरः // 246 // श्रियते स्वयमेवायं यथा कुर्मस्तथैव तत् // इति विचार्य तैस्तत्र निश्रितं कारणं परम् // 247 // गृहीष्यामः शिरो तस्य जित्वैनं ततो वयम् // मृते तस्मिन्नियं देवी ह्यात्मीयैव भविष्यति // 248 // - इति विमृश्य तैस्तत्र प्रीतिपोषकवाक्यतः // भो मित्र स्वागतं तेऽस्तु स्नेहादित्याहतः परः 249 // - श्रुत्वा सदयवत्सोऽपि निजभार्यायुतस्तदा // तत्प्रीतिवचनेनाथ तेषां स निकटे गतः // 250 // तैरपि चासनं दत्वा तत्रोपावेशितस्तदा // त्वं द्यूतरमणं वेत्सि भो मित्र इत्युचुस्ततः // 251 // कुमारेणोक्तमहं वेद्मि तैरुक्तं तर्हि सत्वरम् // रमयस्व त्व मस्माभिः सह द्यूतं मनोहरम् // 25 // प्राह सोऽपि वरं चेति परं त्वहं करोमि किम् // मोचनाय पणस्यापि मत्पाबें वर्तते न किम् // 253 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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