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________________ चरित्रम् 37 श्री सदैववत्सराशा पृष्टा तत तापस राज्ञा पृष्टा ततः सापि सर्व पद्मावती तदा // तस्याने कथयामास मूलतः स्वस्वरूपकम् // 196 // E भूपति रपि तच्छ्त्वा चेतस्यतिचमत्कृतः // तामुवाच मया पुत्री दत्ता ते किं भविष्यति // 197 // | सोचे राजॅस्तदा तत्र ममासीद् धृदि तत्पतिः // तेनैषाऽपि प्रिया भूयात् मत्पत्युर्मानिता सदा॥१९८॥ | भगिनीं गणयिष्यामि ह्यहं प्रीतिपराथ ताम् // भवते रोचते यर्हि तदा त्वां प्रवदाम्यहम् // 199 // मत्पतिना समं राजन् तत्पाणिग्रहणं शुभम् // कारय त्वं प्रमोदेन यथारुच्यन्यथा कुरु // 20 // | श्रुत्वाऽपि सर्वसभ्यैस्तदुक्तं स्वामिन् महामतिः // व्यवहारी मृगांकोऽतः पुच्या विवाह मर्हति // 201 // | सभ्यानां वचनाद्राज्ञा मृगांकन समं तदा // स्वसुताया विवाहश्च महोत्सवेन कारितः // 20 // तस्मै दत्तं बहु द्रव्यं राज्ञाऽपि करमोचने // भोजितं तन्मृगांकेन स्वभार्यावचनात्पुरम् // 203 // K मृगांकोऽथ कियत्कालानंतरं स्वपुरं प्रति // गमनायोत्सुको भूत्वा नावो द्रव्यै रपूपुरत् // 204 // तस्मिन्नवसरे राज्ञा स्वपुत्री स्नेहभावतः // बहुधनप्रदानेन पद्मावत्यपि सत्कृता // 205 // | मृगांकः सह पत्नीभ्यां वेगेन स्वपुरं गतः // भुंक्ते विविधसौख्यानि दानधर्म करोति च // 206 // ज्ञानवद्गुरुसंयोगं समासाद्य कदा शुभम् // निजपूर्वभवं तस्मै पप्रच्छाथ महामतिः // 207 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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