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________________ प्रिये मयाऽपि मूढेन त्वं क्षिप्ता निर्जने स्थले // निराधारा महारोषात् संदिग्धे जीविते तथा // 14 // Kजीविता वं स्वभाग्येन केवलं पूर्वपुण्यतः // समृद्धिं महतीं प्राप्य महो नाशितस्त्वया // 18 // अथ प्रातर्मगांकस्य सुहृदः सर्व एव तत् // ज्ञात्वा धिक्कारयामासु भृगांकं तत्स्वरूपतः // 186 // KE कथयति धिगेनं यो ह्यपराधं विना प्रियाम् // कथयन्निर्जने द्वीपे तत्याज निद्रितां यतः // 187 // KE क्रमेणार्थेष वृत्तांतो राज्ञा ज्ञातो जनाननात् // नृपाने कथयामास मंत्र्येकः कश्चिदेवहि // 188 // मंडपिकाधिकारी यो स्त्रीरूपोऽभूत् स्वरूपतः // चमत्कृतेन राज्ञा तच्छ्रुत्वा पृष्टं समूलकम् // 189 // मंत्रिनिह भवे वापि स्त्रीरूपोऽभूत् परे भवे // प्राह स्वामिन्भवेऽत्रैव जातोऽस्ति स्त्रीस्वरूपकम् // 19 // तदा राजा तमानेतुं कौतुकाकुलमानसः॥ मन्त्रिणं प्रेषयामास सहसांकगृहं प्रति // 191 // ततो मन्त्री तदावासे गत्वा स्त्रीरूपधारिणम् // मंडपिकाधिकारिंस्त्वा माह्वयति नराधिपः // 192 // तयोक्तं चाथ भो मन्त्रिन् पूर्ववन्नृपसन्निधौ // मत्समागमनं चातः परं नैव भविष्यति // 193 // मंत्रिणाऽपि तदा तत्र गत्वा प्रोक्तं तयेरितम् // तामानेतुं नृपेणापि स्त्रीवर्गःप्रेषितः शुभः॥१९४॥ सुखासने स्थिता ताभिः सह पद्मावती तदा // हर्षेण साभवत् पूर्णा राजगृहं समागता // 195 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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