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________________ श्रो सदैववत्स भोजनानन्तरं चाथ सहसांकोऽपि तैः समम् // उपकण्ठं समुद्रस्य गत्वा तत्र व्यलोकयत् // 148 // - ज्ञापितं तेन तेभ्योऽपि यूयं सत्यं वदिष्यथ // तदा शुल्कार्धमूल्येन छुटिष्यथान्यथा नहि // 149 // | स्वल्पं चेद् यदि कूटं स्यात् समूलं तर्हि यास्यति ॥युष्माभिः सत्यमेवैतत् वाच्यं लेख्यं विशुद्धये॥१५०॥ - तेनोक्ता अपि ते सर्वे मृगांकप्रमुखास्तदा // सांयात्रिका महालुब्धा वणिग्विद्याप्रकाशकाः // 151 // प्रवहणपदार्थानां स्तोकं मूल्यं जगुस्तदा // लिलिखुश्च तथा लेख्ये स्वर्ण मौक्तिक सुस्थले // 152 // - मंजिष्टादिभृताः पेटाः प्रोक्ता लिखापिताश्चतैः / सहसांकेन तन्मध्यात् स्वप्रत्ययाय तरक्षणम् // 153 // उद्घाटिता यदा पेटास्तदा दृष्टं महऊनम् // कुद्धेनं तेन तेभ्योऽपि परूषं गदितं बह // 154 // अर्ध शुल्के मयोक्तेऽपि लोभात्सत्यं न पालितम् // युष्माभिश्च कृतं कूटं तत्फलं दर्शयाम्यहम् // 155 // | वाढं तॉस्तयित्वेति सर्वान् बद्धवा चतुष्पथे // समानीय स चिक्षेप कारागारे महाधनान् // 156 // तवृत्तान्ताद् विदेशेऽपि स्वापकीर्तिभयादथ // राज्ञा विज्ञप्य तं ते तु कारागाराद् विमोचिताः॥१५॥ | सर्वेऽपि सहसांकेन भोजनाय निमन्त्रिताः // स्नान देवार्चनाद्याभिः पूजाभिः पूजितास्तदा // 158 // ततस्तान् प्राणयामास पक्वान्नादिसुभोजनैः // प्रवहणस्थितं वस्तु स्वगृहे स्थापितं मुदा // 159 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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