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________________ बहुकोटिमितं द्रव्यं वर्षद्वयेन चार्जितम् // स्त्रीयोग्याश्च ततस्तेन ह्यलंकाराश्च कारिताः // 136 // स्वनाम्नांकिताश्चापि पुरुषाणा मतिप्रियाः // तथैव विविधाकाराः कारिता द्रव्यतस्तदा // 137 // एकदा भूपतेः पुत्री नाम्ना या सुरसुंदरी // तस्य रूपं समालोक्य कामरागवशं गता // 138 // बभूव सोत्सुका साऽपि तत्पाणिग्रहणाग्रहा // तज्ज्ञात्वा तद्विवाहाय राज्ञा स प्रार्थितस्तदा // 139 // प्रकाशयति नात्मानं स्त्रीभावान्मन्यते न तत् // परं राजाग्रहं दृष्ट्वा विचार्य तेन स्वीकृतम् // 14 // अष्टादश महातीर्थ यात्रायां मदभिग्रहः // अस्ति पश्चात् करिष्ये तदेवमाश्वासितो नृपः // 14 // परं चेतस्तृतीयाब्दे षण्मासेषु गतेषु सः // मृगांकः सिंहलद्वीपात् तत्रागात् धनलब्धिमान् // 142 // तत्रादत्वा यतः शुक्लं गम्यते नाग्रतो जनैः॥ रत्नाकरोपकण्ठे च स्वनावः स्थापितास्ततः // 143 // भृगांकोऽपि पुरे तस्मिन् समागत्य विवेकतः // नृपं नत्वा जगामाथ मण्डपिकाधिपं क्रमात् // 144 // मृगांकेन नृरूपत्वात् तदा सा नोपलक्षिता // सहसांकं प्रति प्रोक्तं भो शुल्काधिपते मम // 145 // शुल्कमेव गृहीत्वा प्रवहणमोचनं कुरु // अग्रतो गम्यतेऽस्माभि यथावस्थानुसारतः // 14 // विलम्बकांक्षिणा तेन तच्छ्रुत्वा बाढमादृताः // मृगांकसहिताः सर्वे भोजनाय निमन्त्रिताः // 147 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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