________________ | साथ स्वदेहलावण्यक्षयाय क्षपणद्वयम् // कृत्वा च नीरसाहारं भुंक्ते प्राणार्थमात्रकम् // 6 // सोद्वेजयति तां कामात् प्रत्यहं प्रार्थयन्नपि // तेन खिन्ना सती सापि प्रार्थयामास सुप्रभुम् // 69 // हे नाथ ऋषभ स्वामिन् दुष्कर्मचूरक प्रभो // पूजाकाश्चमे दुःख मीहग द्रुतं विनाशय // 7 // ततश्चक्रेश्वरी देवी तूर्ण प्रादुरभूच्छिवा // साचेदं तां प्रति प्राह वत्से शुभगुणान्विते // 71 // तव शीलप्रभावेण पातिव्रत्यव्रतेन च // जिनभक्तया च तुष्टाहं तव पावं समागता // 72 // उक्तं तयाथ मे मातः शीलरक्षा यथा भवेत् / / तथा त्वं कुरु हे देवि प्रीताऽसि यदि चेन्मयि // 73 // KE ततो वातप्रयोगेण देव्या स्वशक्तितस्तया // प्रवहणानि सप्तैव भग्नानि वार्धिवारिणि // 4 // | पद्मावती तदा दैवाखब्धैकफलकाश्रया // जलधिजलकबोले रुच्छालिता दिनत्रयम् // 75 // सागरान्तः प्रपातेन भूयो मत्स्यै रुपद्रुता // पूर्वकर्मविपाकेन देवतयाऽपि नोद्धता // 76 // प्रतिकारश्च पापानां क्रियते न सुरैरपि // जलगजेन सोसाटय क्षिप्ता नभोंऽगणे ततः // 77 // वैताळ्यपर्वते चास्ति रथनूपुरपत्तनम् // विद्याधरपती राजा नाम्नासौ माणिकुंडलः // 7 // तेनाथ नभसो दृष्टा पतंती सा महोदधौ // गृहीत्वा दुःखितां तां च स स्वपुरे समानयत् // 79 //