________________ उपकण्ठमवाप्य प्रवहणस्थापनं कृतम् // जनाः सर्वेऽपि तत्तीरे युतीर्णा स्नानतत्पराः // 32 // श्रीसदेववत्सब लतागृहे मृगांकश्च सुप्तो तस्य प्रियाऽपि सा // तत्र सुप्ता सुखेनैव निद्रिता च ततः क्रमात् // 33 // तावत्पूर्वभवस्यैव कर्मणो वशतां गतः // मृगांकश्चिंतयामास गूढरोषान्मनस्यपि // 34 // त्यजाम्येनामिहैवाह मिति तेन कपर्दकैः // पञ्चभिः सह पत्रिका लिखिता कोमलाक्षरैः // 35 // अत्र स्नेहादलंकारा कर्तव्या इति शोभने // बद्धवा वस्त्रांचले तस्या स्ततोऽसा वुत्थितस्ततः // 36 // | प्रबन्नः सन् त्वरायुत स्तीरेरुदन् समागतः // रोदिषि किं जनैः पृष्ट स्तदोक्तं तेन मत्प्रिया // 37 // भक्षिता राक्षसैरत्र यूयं नश्यत नश्यत // तदा लोका भयभ्रान्ताश्चेनुः प्रवहणैः सह // 38 // मायया शोकसंविग्नो मित्रै राश्वासितः स च // कियत् कालान्तरे तत्र पद्मावत्यपि जागृता // 39 // अनालोक्य निजनाथं पश्यन्ती सर्वतोदिशम् // रुदन्ती वक्ति नूनं त्वं समुद्र शत्रुतां गतः॥४०॥ अतस्त्वयि पतित्वाद्य स्वप्राणान्नाशयाम्यहम् // दृढीकर्तुं स्वयं लग्ना स्ववस्त्रं पतनाय सा // 4 // | तदा तस्याः करे लग्नो ग्रंथिः किमिति चिन्तितम् // ततस्तं छोटयित्वापि तया तत्र विलोकितम् // 42 // सा लेरवपत्रिका दृष्टा सह पञ्चकपर्दकैः॥ वाचनेनाथ विज्ञातं तत्रस्थं तत् समीरतम् // 43 //