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________________ पित्रे बोधितः सोऽपि विदेशगमनबया // बाढं समुत्सुको नित्यं पितरं तदयाचत // 21 // चिन्तितं तु तदा पित्रा विदेशगमनोत्सुकः // नून मयं गृहे नैव स्थास्यतीतिविभाव्यते // 22 // विचार्येवं च पित्रासावनुज्ञातः क्रयाणकैः // दशाष्टौ पूरयामास स्नेहात्प्रवहणान्यपि // 23 // ततः सोऽति विदेशाय प्रियानुज्ञामयाचत // अनुयास्यामि छायेव तदा सोचे मुदान्विता // 24 // - स्वामिनोक्तं मया सार्द्ध गमनं ते सुदुष्करम् // मरणं जीवितव्यं वा व्यसनं यद् भविष्यति // 25 // | भवत्वित्यपि सा वक्ति स्वामिनं मधुरं वचः // तथाप्यहं त्वया सार्द्ध मागमिष्यामि हे प्रभो // 26 // - तच्छूत्वा बहुधा तेन बोधिता साऽपि न स्थिता // मृगांकन समं भा चचाल हृष्टमानसा // 27 // अथ तं स्वजना यान्तं पन्थानं शुभलक्षणम् // जलाशयावधिं प्राप्य संप्रेष्य वलिता गृहम् // 28 // प्रेरितानि सुवातेन वाधों प्रवहणान्यपि // जग्मुरन्तःसमुद्रश्च योजनानां शतानि वै // 29 // अन्तीपागमे चाथ पञ्जरीस्थो नरो यदा // जलादिग्रहणायैवं द्वीपोऽसावित्युवाच ह // 30 // लोकेरुक्तं तदा मून मत्रोतीर्थ जलादिकम् // गृहीष्यामो वयं सर्वे तच्छ्रुत्वा नाविकैस्ततः॥३१॥
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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