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________________ चरित्रम् 29 श्री सदैववत्स कियत्कालेन तत् सर्व पद्मावत्याऽपि विस्मृतम् // पूर्ववत्प्रेमभावस्तु समाश्नितस्तयोरभूत् // 11 // परंतु हृदयं तस्य खेदातुरं ततोभवत् // कालेनाथ पठित्वा तो झुत्तीर्णौ शास्त्रमभ्यतः॥१२॥ | अनन्तर मुपाभ्यायोऽपृचत् पित॒स्तयोर्द्वयोः // विवाहार्थ च तैरुक्तं योग्याभावे स्थिता वयम् // 13 // उक्तं तेन विचार्येवं भवद्भयो रोचते यदि // सुरूपं सुगुणं चैव कथयामि वरं परम् // 14 // तैरुक्तं तर्हि यूयं तत् कार्य कुरुत सज्जनाः // भवद्भिर्यत् कृतं कृत्य मस्माकं संमतं सदा // 15 // ततस्तेन तयोः पित्रोः समृद्धिसदृशः शुभः // गुणिनोरुनयो श्चैव विवाहः संप्रमेलितः // 16 // उत्सवोऽपिमहान् जातो जनानन्दकरस्तयोः॥ प्रीतिरपि तथैवासीत् प्रत्यहं पूर्वतोऽधिका / / 17 // A अथैकदा सुहृद्गोष्ठयां स्वधनोपार्जने मतिम् // कृत्वा तेन मृगांकेन पृष्टौ स्वापितरौ यदा // 18 // सिंहलदिप मिलामि गंतुं मित्रैः सहाधुना // उचतुस्तौ तदा पुत्र अलं द्रव्यार्जनेछया // 19 // | एक एव सुतोऽसि त्व मस्माकं धन मुत्तमम् // असंख्यातं गृहे स्थित्वा भुंव भोगान् यथासुखम् // 20 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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