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________________ | अथ राजा स तेनाथ जामात्रा सह पत्तनम् // आगान्मानेन सोऽस्थापि कियंति दिवसानि वै // 539 // अथैकदा स राजा वै जामातृसहितो ब्रजन् // राज्ञश्च वाटिकायां वै वनमध्ये च निश्चितम् // 540 // श्रीधर्मघोषसूरीशान् परिच्छदयुतान् गतः॥ दृष्टवा तद्वन्दनायाथ गुरवस्तेन वन्दिताः // 541 // | स्वधर्मातिथये पूर्व धर्मोपदेशदानकम् // कुर्वन्ति यतयो हीति ध्यात्वा तैः गुरुभिस्तदा // 542 // तस्य धर्मोपदेशो वै दत्तश्च तस्य वाञ्छया // वाञ्छा सजनसंगमे परगुणे प्रीतिरौ नम्रता // 543 // विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रति र्लोकापवादाभयम् // भक्तिश्चार्हति शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले // येष्वेते निवसंति निर्मलगुणास्तैरेव भूर्भूषिता // 544 // पुण्यादेवसमीहितार्थघटना नो पौरुषात्प्राणिनां यद् भानोभ्रंमतोऽपि नांबरपथे स्यादष्टमः सैंधवः // - स्वस्थानात्पदमेक मप्यचलतो विंध्यस्य वा नेकशो जायंते मदपालिपालितयशःश्रीलंभिनः कुंभिनः॥ अपि लभ्यते सुराज्यं लभ्यते पुरवराणि रम्याणि // नहि लभ्यते विशुद्धः सर्वज्ञोक्तो महाधर्मः // 546 // - दारिद्रयासमा धर्माः परे स्वल्पफलप्रदाः // कुत्रिकापणतुल्यस्तु जिनधर्मः सतां मतः // 547 // ME स्वल्पोपि जिनधर्मो वै विहितः सुधिया च यः॥ मृगांकस्येव तस्याथ परमसौख्यकारणम् // 548 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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