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________________ राजाथ निजमन्त्रिभ्य आह मंत्रिवरा वराः // उज्जयिन्याश्च यः कश्चिदागतो यदि निश्चितम् // 475 // - स्यात्तदा लभ्यते शुद्धिः सदयवत्सधीमतः // वार्ता च कौतुकवती विशदा च वार्ता लोकोत्तरः // परिमलश्च कुरंगनाभः // तैलस्यविन्दुरिव वारिणि दुर्निवार मेतत्रयंप्रसरतीति किमत्र चित्रम् // 476 / / नरेन्द्रः पुनरूचे वै श्रुयते तस्य तत्पिनुः // कृतापमानतः पुर्या निर्गमनं लोकवादतः / / 477 // मानधना नरा ननं तथा च धन्यपुमपाः / / व्याकलीनचिताश्च स्वस्थानं च त्यजन्ति हि // 478|| त्रयः स्थानं न मुंचन्ति काकाः कापुरूषा मृगाः // अपमाने त्रयो यान्ति // सिंहाः सत्पुरुषा गजाः // 479 // परं चासौ कुमारश्च यत्र यत्र हि यास्यति // गुणवांस्तत्र तत्रैव तस्य भानं भविष्यति // 48 // पूगीफलानि पत्राणि राजहंसास्तुरंगमाः // स्थानभ्रष्टास्तुशोभन्ते सिंहा सत्पुझ्या गजाः॥ 481 // सदयवत्सराजस्य शुद्धिश्चत्वापि लभ्यते // आकारणाय तस्याथ तदा च प्रेष्यते जनः // 482 // तावत्तत्रस्थ एको वै भट्ट उवाच हे नृप // अद्यैवोज्जयिनीतश्च समागतोस्मि भूमिप // 483 // राज्ञा प्रोक्तं च भोभट्ट चेत्त्वं जानासि वै तदा // सदयवत्सराजस्य स्वरूपं वद तत्वतः // 44 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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