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________________ पुरः सदयवत्सस्य सदयवत्सराट् तदा // प्रतिवक्ति यदि त्वं वै प्रियासि तर्हि किं तया // 453 // त्वं चेत् प्रिया चकोराक्षि तदा स्वर्गसुखेन किम् / / त्वं चेत् स्थितासि मे चित्ते तदालं परभार्यया // 45 // सावलिंगा ततः प्राह हे स्वामिन् सा परं तु वै / / वाञ्छति त्वां पतिं कर्तुं त्वदर्थं च तया खलु // 455 // पण्मासान् श्रीयुगादीशसेवाकृतास्ति निश्चितम् // कुमारः प्राह हे देवि तदा तस्या भविष्यति // 456 // विवाहे तव वैरं वै यतो दुखं च जायते // अन्यासक्तं पतिं वीक्ष्य प्रत्यक्षं हरिणीदशः // 457 // तदुःखं भवति यन्न प्रवक्तुमपि शक्यते // वरं हृता मृता वा स्याद् वरं जन्मविवर्जिता // 458 // वरं विषधरग्रस्ता व शलानरोपिता // वरं दग्धाग्निना कुक्षी तीक्ष्णशल्यादिता वरम् // 459 // तिच्छयराणपहत्तं नेहो बलदेव वासुदेवाणम् // साववीणं वयरं तिणिहवि परभागपत्ताणि // 460 // सा प्राह नाथ तत्सर्वं सत्यमेव परं तव // बहुस्त्रीसंग्रह मे न चिते वैरं मनागपि // 461 // आयास्यति तदा प्राह कुमारस्तां प्रति प्रभुः // शृणु देवि मया प्रोक्त मतिप्रेमप्रभावतः / / 462 / / भूपः स्वकीयं यदि सर्वराज्यं ददाति मे स्वीयसुतासमेतम् // नेच्छामि भार्यामपरां तथापि वृष्टिं क इच्छेत्परमान्नतृप्तः // 463 // रा
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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