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________________ खलजण सह संगेणं पडंति सुजणाण मछएणछ // दहवयण कयवराहे रयणनिही वंधणं पत्तो // // | विच्छायतां वहसि किं सहकारवृक्ष-निःशेषलोककमनीयसमृद्धिसार // // प्राप्ते वसंतसमये तव सा विभूति भुवि भविष्यतितरामचिरादवश्यम् // 321 // इत्यादिश्च वदन्तस्ते ह्यश्रुभिः पूर्णनेत्रकाः // स्वस्वस्थानं च जग्मु वै सदयवत्सराडपि // 322 // शुभशकुनतः प्रैषं प्राप्तोऽथ भार्यया सह // अग्रे चचाल भर्तारं सावलिंगाऽथ पृच्छति // 323 // | अथावां कुत्र यास्यावो हे स्वामिन् कृपया वद // वदति सदयवत्सश्च देशाः सन्ति मनोहराः॥३२४॥ वहवो गमनार्हा वै पत्नी प्राहाथ हे प्रिय // तत्सत्यं नैव संदेहः परमन्यच्च शिष्यते // 325 / / बालराज्यं भवेटाच दैरान्यं यत्र वा भवेत् // स्त्रीगज्यं मूर्खराज्यं च यत्र म्यानत्र नो वसेत् // 326 // कुदेशं च कुग्रामं च कुसंबंधं कुसुहृदम्॥ कुभार्या च कुपुत्रं च दूरतः परिवर्जयेत् // 327 // // तिण देसडे न जाइये जिण अप्पणो न कोई-सेरीसेरी हीडीए-वात न पूछे कोई // एवं श्रुत्वा कुमारश्च प्रवक्ति शृणु हे प्रिये // शास्त्रसारं समालम्ब्य जनो याति सुबुद्धिमान् // 328 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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