________________ श्री सदैववत्स 15 चरित्रम् वध्वा सह कुमारस्य चलनानंतरं खलु // कुमारस्य ततो माता विलापान् कुर्वती तदा // 313 // नानाविधांश्च लग्ना वै रोदितुं क्रमशश्चसा / आश्वासिता सखीभिश्च निवृत्तिं रोदनाद्गता // 31 // अथ सर्वेऽपि ते प्रेम्णा स्वजनाश्च परस्परम् // मंत्रिणः कीदृशी चेष्टा प्रोचुरहो दुरात्मनः // 315 // | पात्रमपात्रं कुरुते गुणांश्च स्नेहमाशु नाशयति // अमले मलं प्रयच्छति दीपज्वालेव खलप्रकृतिः३१६ केप्याहुनृपतिश्चापि ह्यहो विमर्शतो विना // निष्कासनं कुमारस्य करोति मूढधीः खलु // 317 // आयुषा राजाचत्तस्य पिशुनस्य धनस्य च // खलस्नेहस्य दहस्य नास्ति कालो विकुवेतः // 31 // आहश्च पुनरेके वै दुष्टेन मन्त्रिणा खल // उत्पातो विहितो नूनं एष नैवात्र संशय // 319 // एके सत्पुरुषाः परार्थ घटकाः स्वार्थ परित्यज्य ये॥सामान्यास्तु परार्थ मुद्यमभृतःस्वार्थाविरोधेन ये॥ तेऽमी मानुषराक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नंति ये॥ ये तु नंति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे३२० 0 // सुयणो कहलहइ मुदं जछखलो सामिकन्न पडिलग्गो // तच्छए हृयदोसो खलाण पुणहि मगाणंदो॥०॥ जएविजं न हृअं नहुहोही जं च नेव खलु सुअं॥ तं चिय जपंति तहापिसुणा जह होइ सच्चसारिछं॥०॥