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________________ चरित्रम् श्री सदैववत्स पीडिता वक्ति सा नूनं परं चित्तेऽथ वत्स हे // | | ॥इक्केण विणा पियमाणसेण सभाव नेह सहिएण // जणसंकुलांवि पुहवि पुत्तय सुन्ने व पडिभाइ॥० प्रत्यूषे च ततो मात्रा प्रातराशं स कारितः // 294 // मातृहत्तुलनां चैव कोहि कारयितुं क्षमः // सुघामधुविधुज्योत्स्नामृद्वीकाशर्करादपि // 295 // वेधसा सार मुध्धृत्य विहितं जननीमनः // अखण्डितरसैर्युक्तं मंगलाथै स भोजितः // 296 // दधिकर्पूरचूर्णादियुतं च पत्रवीटकम् // तस्मै ददौ प्रणामं स विधाय मातरं प्रति // 297 // आदिश्य च वधूसाराकरणं निर्गतो हि सः // यावत्तावच्च निर्याता पतिमन्यैव तद्वधूः // 298 // वारिताऽपिकुमारेण सुकुलीना च वक्ति सा // प्राणाः कुलस्त्रियो नूनं पत्याधीना भवन्ति हि // 299 // देशान्तरे गते पत्यौ जीवन्त्यपि मृतवे सा // लोकान्तरे गते पत्यौ साप्यनुम्रियते खलु // 30 // शोकेन मुंचति शृंगारं सम्मतं विदुषां खलु // शशिना सह याति कौमुदी सह मेघेन तडिद् विलीयते॥ प्रमदाः पतिवम॑गा इति प्रतिपन्नं हि विचेतनैरपि // 30 // आपत्कालेऽपि संप्राप्ते यन्मित्रं मित्र मेव तत् // वृद्धिकाले तु संप्राप्ते उर्जनोऽपि सुहृनवेत् // 30 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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