________________ प्रागलन्येनैव संवक्तुं नूनं च महिलाजनः // त्रियो हि विनयैर्युका अल्पभारिण्य एव च // 23 // सलज्जाश्चैव शोभंते तासां धाष्टयं तु वाच्यताम् // संयोजयति नूनं हि नैव कायोऽत्र संशयः // 283 // आतिगृहीतया चैवं मयाकुलेन चेतसा // भिहितं च राजेन्द्र इत्युक्या निगेता च सा // 285 // यदि त्वं कथयत्यम्बा कुमारं प्रति चास्वसि / / ततश्चापि तदाहं गमिष्यामि त्वया सह // 28 // वदंतीति कुमारेा वारिता सा नतिपति // अपि च वत्ति सा सत्यं या यहि विचारितम् // 26 // 0 // महिलाण होईसरण-पइर पुत्तोव जीवलोगंमि // पाइधुत्तविरहिआउजीवंतिउ मउगम ताउ। आह हे पुत्र शीघ्रं वै पश्चादागत्य निश्चितम् / तर पादौ नमस्यामि नेत्र काचों संशयः // 20 // तीर्थानामष्टषष्टिा प्रोता म्वृनिए भारत // तेषु नागिरथी श्रेष्ठा नतोऽपि जननी मता // 28 // अपष्टिवतीर्थानि त्रयस्त्रिशंदेवताः / / अटाशीतिः सहस्त्राण मातुः पाद वसति हि // 20 // उत्तम हि व्यासेन यात्रैन बलिष्ठ नोः // जनरेः विदेशे हि ब्रामणं शयनं भुवि // 21 // पाद संचरणेनैव दुःखिता त्वं भविष्यसि // तत्र दुग्वं मया साकं मा सहस्व दयां कुरु // 292 // | पादवन्धेन दुःखं वै त्वया साई ममापि च // पर्यवसाप्य सम्यक् सा संस्थापिता च तत्र वै // 293 //