________________ नद्यवहत्ततस्तेषां कर्पटंचैव शोभनम् / / पढेंचापि दुकुलंच शाटिकादितथैवच // 198 // अन्यान्यपिचवस्त्राणि ह्युच्छालितानिसर्वतः // यथैकच्छाय मुद्भूतं नगरं तञ्चस्वदभुतम् // 199 // | नैस्तिकेषुचहट्टेषु ह्युतक्षितैः पूगसंचयैः // दन्तुरमिवसंजातं चतुष्पथं च सर्वतः॥ 20 // | ताम्बूलिकापणात्तेन ताम्बूलानां हि संचयाः // गजेनोच्छाल्य सर्वत्र प्रस्तारिता जनैस्ततः // 201 // Pal कृतबुम्बारवै नूनं नश्यनिनगरंमहत् // कलकलयुतंजातं भीत्या तस्य गजस्य हि // 202 // इत्थं सर्वप्रकारेण सकलं नगरं गजः कुर्वन्गजःसनिस्सारं ब्राह्मणपाटके गतः // 203 // कस्यापि तत्र तावद्धि भार्यायाश्चद्विजन्मनः // पंचशब्दस्य वाद्यानि सीमंतस्य महोत्सवे // 204 // नाटयपूर्व च वाद्यंते सीमंतिनी च सा पुनः // पितृगेहात गृहंपत्यु बजन्त्यासीदितश्चसः // 205 // मदोन्मतोगजश्चापि तत्रायातश्चतंगजम् // प्रत्यक्षंयमदूताभं दृष्ट्वा परिजनस्ततः // 206 // / सकलोऽपिभयत्रस्तोदिशोदिशंननाशह // गर्भभाराच्च सा बाला शाटिकामुकुटादितः // 207 // बहुनेपथ्यभाराच्च ह्यशक्ता सा पलायने // धृता गजेन संगत्य स्वदन्तमूशलोपरि // 208 // हाहाकारश्चसंजातो जनानां सुमहांस्तदा // भीत्या खेदपराणां वै तस्याश्चपतिरुच्चकैः // 209 //