________________ चरित्रम् श्री सदैववस - गगनेगणयतिगणकश्चंद्रेण समागमं विशाखायाः // अन्यासक्तांगृहिणीं कथमपिमूढोनजानाति // 186 // राजा वक्ति च कूटं ते वचो यदि भविष्यति // तदा तव ललाटेहि झंपां चहृदये तथा // 187 // E- दापयिष्येयवध्यत्वाद्ब्राह्मणस्य श्रुतं मया // राज्ञा गजेन्द्ररक्षार्थ यत्नो नूनं सुकारितः // 188 // गजवैद्या स्तथाकार्य दर्शितः स सुनिश्चितम् // तैरुक्तंदेव देहोऽस्य निरामयोगजस्य वै // 189 // अपायःकोपिनेवास्ति नानाहारैः स पोप्यताम् // लोहस्य श्रृंखलाभिश्च सम्यग्निगडितोगजः // 190 // आलानस्यततः स्तम्भे नूनंबद्धो महागजः // व्यतीयाय सुखं रात्रिः प्रभातेऽगान्नृपस्ततः // 191 // गजवृत्तं ततः पृष्टाः हस्तिपकाः सुखी गजः // एवमितिचतैरूक्तं प्रथमः प्रहरोगतः // 192 // द्वितीयप्रहरे हस्ती मदोन्मतो ववह // आलानस्तम्भमुन्मूल्य शृंखलाः खण्डशः कृताः // 193 // - आषाढके च मासेहि सजलाभ्रसमानकम् // गर्जन निःमृत्य शालातः पुरेचैवनिरंकुशः // 194 // C हहाहालानि च भ्राम्यन् पातयति चतुष्पथे // सौगन्धिकंचहट्टस्थं कर्पूरंसुमहत्तथा // 195 // कस्तुरिकांतथासम्यगगुरुकंचगन्धवत // तैलादि चैव सर्व स तथा दलितवान् करी // 196 // तेषां लवोऽपिदष्प्राप आसीच्चनैवसंशयः // ततैलस्यभाण्डानि स्फोटितानि च तेनवै // 197 //