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________________ चरित्रम् श्री सदैववत्सा कंठस्था या भवेद्विद्या सा प्रशस्या सदा बुधैः // या गुरौ पुस्तके विद्या तया मूढः प्रतार्यते // 164 // त्रिजगतस्तुवाताव ह्यहं स्वकण्ठवासया // विद्यया वेनि राजेन्द्र नैव कार्योऽत्रसंशयः // 165 // ज्योतिश्शास्त्रे विशेषेण ह्यधीत्यस्मि परंनृप // तत्रत्रैव सुसूक्तानि गृहचारं च सर्वशः // 166 // चक्रालेश्चसुचारंवै ह्युत्पातानां दशांतथा // आगामिवत्सरस्यापि भावंनष्टजनेस्तथा // 167 // वर्तनं चन्द्रसूर्याणा भुपरागं च तत्वतः // तन्मानं चापिभूतस्य भाविनश्चापि तत्वतः॥ 168 // समयस्यापि सम्यग्वै स्वरूपज्ञानमर्थतः // पदार्थस्यापिनष्टस्य प्रकटनं च सत्यतः // 169 // अन्यदपि च जानामि नैव किंचिच्च शिष्यते ॥सर्वज्ञ इति सम्यङ्मे जाता ख्यातिः सुदुर्लभा // 17 // अतिरेकस्य वाक्यं तदेवं श्रुत्वा नृपस्तदा // चुकोप बहुशश्चित्ते ह्यहो गर्वगिरिःकियान् // 11 // असारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडंबरो महान् // नहि स्वणे ध्वनिस्तादृक् यादृक्कांस्ये प्रजायते // 17 // उत्क्षिप्य टिदिभिः पादमास्ते भंगभयाद्भुवः // स्वचित्तकल्पितोगर्वः कस्यकस्य न विद्यते // 173 // ततो राजाह हे विप्र कथा अन्यभवाश्चयाः॥ तास्ततिष्ठन्तु किं ताभिनव यासां च विद्यते // 17 // स्वरूपाणां च विज्ञानं कामपिमेपुरस्तप्तः // आसन्नां च कथां सम्यक भविष्यन्तीं वद द्विज // 175 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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