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________________ अनुष्ठानने रहिता पाठमात्रेण केवलम् // रंजयत्येव या लोकं किं तया शुकविद्यया // 152 // गोप्यते या कृतज्ञस्य मूर्खस्याग्रे प्रकाश्यते // न दीयते सुशिष्येभ्यः किं तया शुष्कविद्यया // 153 // | परोत्कर्ष समासाद्य विक्रयाय प्रसार्यते // या मुहुर्धनिनामग्रे किं तया पथ्यविद्यया // 154 // न तीर्यते यया घोरः संसारमकराकरः / / नित्यं चिंतानुषंधिन्या किं तया मोहविद्यया // 155 // न विवेकांचितांबुद्धिं न वैराग्यमयं मनः // संपादयति या पुंसः किं तया कष्टविद्यया // 156 // - परमात्सर्पशल्येन व्यथा संजायते यया // सुखनिद्रापहारिण्या किं तया शूलविद्यया // 157 // परसूक्तापहारेण स्वसुभाषितवादिना // स्वोत्कर्षः स्थाप्यते यस्याः किं तया चौरविद्यया // 158 // | लोभः प्रभतवित्तस्य रागः प्रव्रजितस्य च // न यया शांतिमायाति किं तया शोकविद्यया // 159 // गृहेचैव प्रगल्भेत सभायां न प्रवर्तते // प्रतिभासोऽन्यथा यस्याः किं तया दोषविद्यया // 160 // - यया भूपतिमादृत्य परेषां गुणनिंदकः // दानमानोन्नति हंति किं तया मृकविद्यया // 161 // रसायनी जराजीर्णश्चिररोगी यया भिषक ॥धातुवादी दरिद्रश्च किं तया हास्यविद्यया // 12 // परोपतापः क्रियते वश्यादिकरणैर्यया // यंत्रतन्त्रानुसारिण्या किं तया काकविद्यया // 13 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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