________________ चरित्रम् श्री सदैववत्स लक्ष्मीमायुश्चकुर्वन्तु पुत्राप्तिं वस्तथैव च // राज्ञा पृष्टं ततस्तस्मै कुतोदेशाच्चहेद्विजाः // 140 // यूयमत्रसमायातास्तन्मेकथयत द्रुतम् // स प्राहनगरेऽत्रैव राजंस्तव वसाम्यहम् // 141 // तहींयंति दिनानिवै कथंनात्रसमागताः // कारणं किं प्रजेशेन पृष्टो विप्रः समावदत् // 142 // न हेतुरत्रकोप्यस्ति केवलं भवितव्यता // छायेव निजदेहस्य लंध्यते जातु नो नरैः // 13 // कर्मणामर्गला भग्ना पापमयक्षयंगतम् // भाग्येन दर्शनंजातंतवाद्यैव महीपते // 144 // - राजा प्रोवाच भोविप्र यदीयत्समयं भवान् // समायातो न किं तर्हि दूषणं मम हेद्विज // 145 // विप्रश्चप्राहभोदेव न चैतद्विषये तव // दूषणं विद्यते किंचिदुक्तं चैतत् सुसूरिभिः // 146 // - नोलूकोप्यवलोकतेयदिदिवा सूर्यस्य किं दुषणं // पत्रंनेवयदाकरीरविटपे दोषोवसंतस्य किम् // 147 // - वर्षा नैव पतंति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम् // यत्पूर्व विधिनाललाटलिखितंतन्मार्जितुंकःक्षमः॥१४॥ राजावदच्चभोविप्र वार्ताकामपिबोधसि // शास्त्रस्येतितदावोचद द्विजोपि बहप्रेमतः // 149 // करोति दृषदंरत्नं पातु वः सा सरस्वती // प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैवकरोति या // 15 // उपकाराय या पुंसां न परस्य न चात्मनः // पत्रसंचयसंभारैः किं तया भारविद्यया // 151 //